भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का कै. श्रीमती लक्ष्मीबाई दगडूशेठ हलवाई दत्त मंदिर ट्रस्ट के 125वें स्थापना दिवस समारोह में सम्बोधन
पुणे :27.05.2022
सर्व अपराध नाशाय
सर्व पाप हराय च
देव देवाय देवाय
श्री दत्तात्रेय नमोस्तुते
आज आप सब के बीच आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे भगवान दत्तात्रेय और गणपति बप्पा की पावन धरती पर आने का अवसर प्राप्त हुआ। सबसे पहले मैं श्रीमती लक्ष्मीबाई दगडूशेठ हलवाई दत्त मंदिर ट्रस्ट के 125 वर्ष पूर्ण होने पर हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ।
मुझे अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान लगभग बारह-तेरह बार महाराष्ट्र की यात्रा करने का सौभाग्य मिला है। महाराष्ट्र की धरती हर प्रकार से धन्य है। इस धरती पर संत तुकाराम, ज्ञानेश्वर, नामदेव और स्वामी समर्थ जैसी विभूतियों ने अपने पावन विचारों और प्रवचनों से सामाजिक और धार्मिक विचार धाराओं को नयी दिशा प्रदान की। इन विचारों से न केवल महाराष्ट्र में, अपितु संपूर्ण भारत में एक नयी चेतना जागृत हुई। ऐसी पवित्र भूमि पर गणपति और दत्तात्रेय का मंदिर होना प्रासंगिक भी है और स्वाभाविक भी।
हम सब जानते हैं कि महाराष्ट्र मध्य काल से ही अनेक प्रकार से अग्रणी राज्यों में रहा है। शिवाजी महाराज की हिंदवी स्वराज की पुकार हो या मराठा सरदारों की 'अट्टोक से लेकर कटक' की जय घोष, मराठाओं का प्रभाव सदैव हमारे देश को एकजुट करने में प्रयासरत रहा है। अनेकता में एकता का अद्भुत उदाहरण मराठा सरदारों ने आज से दो सौ साल पहले ही प्रस्तुत कर दिया था। पिछले वर्ष मुझे उस विशाल साम्राज्य के प्रवर्तक शिवाजी महाराज की रायगढ़ स्थित समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
राजनीतिक प्रसंग में ही नही, सामाजिक कार्यों में भी महाराष्ट्र ने सदैव अग्रणी भूमिका निभायी है। भारत में बेटियों के लिए सर्वप्रथम विद्यालय सावित्रीबाई फूले द्वारा यहीं पर शुरू किया गया था। सामाजिक जागरूकता की यह पहली कड़ी थी जिसकी नींव महाराष्ट्र में रखी गयी थी। इसी परंपरा को प्रोत्साहन देते हुए, भारत की प्रथम महिला डॉक्टर, आनंदी गोपाल जोशी ने इस धरती को गौरवान्वित किया। यह एक सुखद संयोग है कि मेरी पूर्ववर्ती, श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल जी ने, जो यहां इस सभा में उपस्थित हैं, भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति का सम्मान प्राप्त कर एक बार फिर इस भूमि को गौरव प्रदान किया। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि 1 जून, 2021 को श्रीमती पाटिल जी को मैक्सिको देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन सभी को दिया जाता है जिन्होंने मैक्सिको देश या सम्पूर्ण मानवता को अद्भुत योगदान दिया हो और मैक्सिको व अपने देश के पारस्परिक सम्बन्धो में वृद्धि की हो। श्रीमती पाटिल जी ने आज ये पुरस्कार मुझे सौंपा है जिससे कि इसे राष्ट्रपति संग्रहालय में सुसज्जित किया जा सके। इस पहल के लिए मैं श्रीमती पाटिल जी का आभार व्यक्त करता हूं।
सामाजिक और धार्मिक सेवा के उद्देश्य से स्थापित श्रीमती लक्ष्मीबाई दगडूशेठ हलवाई दत्त मंदिर ट्रस्ट के सफल कार्यों और समाज सेवा के विषय में जान कर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई है। मुझे बताया गया है कि यह ट्रस्ट निर्धन छात्रों को छात्रवृत्ति, अनाथालयों और वृद्ध आश्रमों में भोजन की पूर्ति जैसे कल्याणकारी कार्य कर रहा है। मुझे यह भी बताया गया है कि पिछले दो वर्षों में, कोविड महामारी के दौरान इस ट्रस्ट द्वारा किये गए कार्यों में शामिल है - जरूरतमंदों के बीच भोजन वितरण और मुस्लिम भाइयों का अभिनन्दन जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना, अनेक हिन्दू कोविड ग्रस्त मृतकों का दाह संस्कार किया। ऐसे कार्य हमारी एकता और सामाजिक सद्भावना को प्रोत्साहित करते हैं। इन पुनीत कार्यों से जुड़े सभी लोगों और ट्रस्ट के सभी सदस्यों को मैं साधुवाद देता हूँ।
लगभग सवा सौ साल पहले स्थापित इस ट्रस्ट ने भगवान दत्तात्रेय मंदिर का संरक्षण और समय-समय पर जीर्णोद्धार भली-भांति किया किया है। भगवान् दत्तात्रेय का माहात्म्य अद्वितीय है। ऋषि अत्रि के सुपुत्र दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का अवतार माना जाता है। इसीलिए दत्तात्रेय को त्रिमूर्ति भी कहा गया है। हिन्दू ग्रंथों के अनुसार, दत्तात्रेय ने अपने संन्यास काल में भ्रमण के दौरान बिना शिक्षकों की मदद के, प्रकृति को देखकर जागृति प्राप्त की। अतः लोक मान्यता के अनुसार, दत्तात्रेय के चौबीस गुरु थे जो पंच तत्वों सहित प्रकृति से जुड़े सभी पशु, पक्षी एवं अन्य जीव थे। उनके इस अनुभव से यह रेखांकित होता है कि शिक्षा और अभ्यास सभी स्रोतों से आते हैं और आत्म-प्रयास सीखने का एक महत्वपूर्ण साधन है। अतः यह हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम प्रकृति के निकट रहें और अपना जीवन प्राकृतिक नियमों के अनुरूप व्यतीत करें।
देवियो और सज्जनो,
मैं विशेष रूप से दगडूशेठ परिवार का अभिनंदन करना चाहूँगा जिन्होंने पुणे शहर में एक महत्वपूर्ण पहल की। दगडूशेठ परिवार द्वारा स्थापित गणपति मंदिर और दत्त मंदिर ने इस शहर में एक नयी ऊर्जा जागृत की। गणपति मंदिर के संस्थापक होने के साथ-साथ, दगडूशेठ जी ने लोकमान्य तिलक के सानिध्य में गणपति उत्सव की भी शुरुआत की। राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाने वाला इस उत्सव का हमारे राष्ट्रीय राजनैतिक क्षेत्र में अमूल्य योगदान रहा है। गणपति उत्सव अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध राष्ट्रीयता और सामाजिक सद्भावना का स्रोत बन कर उभरा। स्वतंत्रता के आंदोलन में इस महोत्सव का योगदान अनन्य है। इस प्रकार इस मंदिर, परिवार और ट्रस्ट ने महाराष्ट्र को जन आंदोलन की भूमि बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इसके लिए मैं उनकी सराहना करता हूँ।
संभवतः यह इसी जागृति की देन थी कि हमारे संविधान के प्रमुख निर्माता बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अपना आंदोलन यहीं से आरम्भ किया। वंचित जाति के होने के बावजूद, उन्होंने कड़े संघर्ष के साथ ज्ञान अर्जित किया और मात्र शोषितों और वंचितों के लिए ही नहीं अपितु मानवता के लिए एक आदरणीय और अनुकरणीय विभूति बने। महाराष्ट्र के लिए यह परम सौभाग्य की बात है कि इस महान विभूति की जन्मभूमि और दीक्षास्थल इसी प्रदेश में स्थित है।
अभी पिछले सप्ताह ही मुझे राजकीय यात्रा पर जमैका जाने का अवसर मिला। वहाँ पर भारतीय मूल के हमारे भाई-बहन अनेक दशकों से रह रहे हैं। इस यात्रा के दौरान मिला उनका अपार स्नेह मुझे जीवन भर याद रहेगा। पर जो बात महत्वपूर्ण है और जिसका मैं यहां उल्लेख करना चाहता हूँ वह है - जमैका की सरकार द्वारा भारतीय मूल के लोगों के योगदान, भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों को संज्ञान में लेना। भारतीय मूल्यों को सम्मान देने के लिए जमैका की सरकार ने किंग्स्टन स्थित एक सड़क का नाम ‘आम्बेडकर एवेन्यू’ रखा है जिसका लोकार्पण मैंने अपनी इस यात्रा के दौरान किया। महाराष्ट्र में जन्मे भारत के एक महान सपूत के आदर्शों और मूल्यों का अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता और सम्मान हम सब के लिए गर्व का विषय है।
देवियो और सज्जनो,
मैं आशा करता हूँ कि पुणे और महाराष्ट्र ऐसे ही अपनी गौरवमयी यात्रा पर अग्रसर रहेंगे और देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास में अपना योगदान करते रहेंगे। एक बार फिर मैं श्रीमती लक्ष्मीबाई दगडूशेठ हलवाई दत्त मंदिर ट्रस्ट के सदस्यों को उनकी 125वीं स्थापना दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई देता हूँ और यह आशा करता हूँ कि आप सभी इसी प्रकार से सामाजिक और कल्याणकारी कार्य करते रहेंगे। मेरी शुभकामनाएँ आप सब के साथ है।
धन्यवाद,
जय हिंद!