भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का परौंख गांव में जन अभिनंदन समारोह के अवसर पर भाषण
परौंख: 27.06.2021
आज अपनी मातृभूमि व पैतृक गांव में आकर मुझे बेहद खुशी हो रही है। आप सबके बीच यहां पहुंचने के पहले मैंने पथरी देवी मंदिर जाकर दर्शन किया और आशीर्वाद लिया। मुझे बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित करने का भी सौभाग्य मिला। अपने पुराने पुश्तैनी निवास का जीर्णोद्धार करके उसे ग्रामवासियों के उपयोग के लिए समर्पित कर देने के अपने निर्णय के बारे में मुझे संतोष का अनुभव होता है। अब मेरे गांव के लोग उसका उपयोग मिलन केंद्र के रूप में कर रहे हैं। आज वहां जाकर मेरी बचपन की अनेक स्मृतियां ताजा हो गई। इस गांव के बच्चों, खासकर बेटियों को शिक्षा की सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से निर्मित वीरांगना झलकारी बाई इंटर कॉलेज को देखकर भी हार्दिक प्रसन्नता हुई है।
मैंने सपने में भी कभी कल्पना नहीं की थी कि गांव के मेरे जैसे एक सामान्य बालक को देश के सर्वोच्च पद के दायित्व-निर्वहन का सौभाग्य मिलेगा। लेकिन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने यह कर के दिखा दिया। आज इस अवसर पर देश के स्वतन्त्रता सेनानियों व संविधान-निर्माताओं के अमूल्य बलिदान व योगदान के लिए मैं उन्हें नमन करता हूं। सचमुच में, आज मैं जहां तक पहुंचा हूं उसका श्रेय इस गांव की मिट्टी और इस क्षेत्र तथा आप सब लोगों के स्नेह व आशीर्वाद को जाता है।
भारतीय संस्कृति में‘मातृ देवो भव’, ‘पितृ देवो भव’, ‘आचार्य देवो भव’ की शिक्षा दी जाती है। हमारे घर में भी यही सीख दी जाती थी। माता-पिता और गुरु तथा बड़ों का सम्मान करना हमारी ग्रामीण संस्कृति में अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। गांव में सबसे वृद्ध महिला को माता तथा बुजुर्ग पुरुष को पिता का दर्जा देने का संस्कारमेरे परिवारमें रहा है, चाहे वे किसी भी जाति,वर्ग या संप्रदाय के हों। आज मुझे यहदेख कर खुशी हुई है कि बड़ों का सम्मान करने की हमारे परिवार की यह परंपरा अब भी जारी है।
बहनो और भाइयो,
मेरी यह यात्रा पहले ही होने वाली थी। यहां आने में विलंब के कुछ कारण रहे हैं। राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद अन्य संवैधानिक क्रियाकलापों को सम्पन्न करने के साथ-साथ, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जाकर वहां के लोगों और सरकारों से मिलने और उनके मुद्दों को समझने का दायित्व निभाने में समय लगा। सन 2019 में यहां आने का कार्यक्रम तय हो चुका था। लेकिन लोकसभा चुनाव और उसके बाद मंत्रिमंडल के गठन से जुड़ी संवैधानिक जिम्मेदारियों के कारण व्यस्तता बढ़ गई और दिल्ली में बने रहना अनिवार्य हो गया। सन 2020 के दौरान कोरोना की महामारी के कारण यहां आना संभव नहीं हो पाया। अंतत: आज इस महामारी की चुनौतियों पर कुछ अंकुश लगने की स्थिति में आप सबके बीच आना संभव हो पाया है। लेकिन इस बीच मोबाइल, वीडियो जैसे संचार माध्यमों की नई सुविधाओं की सहायता से गांव के लोगों से निरंतर संपर्क बना रहा, जिसका मुझे बहुत संतोष है। मैं यह भी कहना चाहूंगा कि मैं कहीं भी रहूं, मेरे गांव की मिट्टी की खुशबू और मेरे गांव के निवासियों की यादें सदैव मेरे हृदय में विद्यमान रहती हैं। मेरे लिए परौंख केवल एक गांव नहीं है, यह मेरी मातृभूमि है, जहां से मुझे, आगे बढ़कर, देश-सेवा की सदैव प्रेरणा मिलती रही। मातृभूमि की इसी प्रेरणा ने मुझे हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से राज्यसभा, राज्यसभा से राजभवन व राजभवन से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा दिया। मैं जब देश में होता हूं तो मेरी जन्मभूमि यानि मेरा गांव मेरे हृदय में विद्यमान रहता है और जब मैं सरकारी दौरे पर विदेश जाता हूं तो मेरा देश भारत मेरी मातृभूमि के रूप में मेरे मन में सदैव बना रहता है। मातृभूमि के प्रति इसी कृतज्ञता का भाव लेकर आज मैं इस क्षेत्र की धरती को शत-शत नमन करता हूं।
मेरे प्यारे ग्रामवासियो,
सबसे पहले मुझे अपने सहपाठी जसवन्त सिंह, विजयपाल सिंह उर्फ सल्लू सिंह, हरीराम, चन्द्रभान सिंह भदौरिया , राजाराम और दशरथ सिंहयाद आते हैं। उनके साथ मैंने अपनी पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत की और हम सबने साथ-साथ अपने भविष्य के सपने साझा किए। उसी संगति में एक-दूसरे की मदद करने जैसे जीवन-मूल्यों का निर्माण भी हुआ। उन मित्रों और सहपाठियों का मेरे जीवन में विशेष स्थान है।
हमारे गांव के वातावरण और यहां के लोगों से जीवन-निर्माण के विभिन्न आयामों को विकसित करने में भी मुझे मदद मिली है। मुझे आज भी स्मरण है कि इस गांव में राजनैतिक चेतना जगाने की शुरुआत स्वर्गीय बजरंग सिंह जी ने की थी जिन्हें डॉक्टर राम मनोहर लोहिया को परौंखगांव में लाने का श्रेय जाता है। श्री धनसिंह भदौरिया जी ने अपने प्रयासों द्वारा गांव के लोगों में आध्यात्मिक और धार्मिक चेतना को व्यापक आधार दिया। सामाजिक सौहार्द की भावना को मजबूत बनाने वाले व्यक्ति की भूमिका में स्वर्गीय तुराब खान याद आते हैं।
आज राष्ट्रपति के रूप में तीनों सेनाओं के सुप्रीम कमांडर की भूमिका निभाते हुए मुझे अपने गांव के सैन्य अधिकारी और जवान श्री जगदीश सिंह भदौरिया और गोरे लाल सिंह के नाम का भी स्मरण होता है।
हमारे गांव के कुछ प्रमुख व्यक्तियों की विशेष स्मृतियां मेरे मानस पटल पर आज भी अंकित हैं।सूबेदार सिंह, कैलाशनाथ वाजपेयी,गहबर सिंह, रामचन्द्र शुक्ला, मोतीलाल गुप्ता,बाला प्रसाद शुक्ला,मास्टर राजकिशोर सिंह, महेश सिंह और भोले सिंहजैसे महानुभावों ने इस गांव को भारतीय संस्कृति के सहज मूल्यों के साथ जोड़कर रखा। गांव के वातावरण में सामाजिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता, सौहार्द, शिक्षा के प्रति लगाव, कर्तव्यों के प्रति चेतना और ऐसे कई आदर्शों को मजबूत बनाने में उन लोगों की बहुत बड़ी भूमिका रही है।
हमारे कुछ सहपाठी और वरिष्ठ ग्रामवासी आज हम सबके बीच नहीं हैं। उन दिवंगत आत्माओं की स्मृति को मैं सादर नमन करता हूं।
कुल मिलाकर शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने, सामाजिक न्याय पर आधारित राजनैतिक चेतना को जन्म देने, चरित्र व जीवन के निर्माण में उपयोगी संस्कारों को बनाए रखने तथा आपसी भाई-चारे पर ज़ोर देने के गांव के वातावरण का समग्र प्रभाव मेरी सोच पर भी पड़ा है।
बहनो और भाइयो,
मैंने अपने जीवन के आरंभिक चौदह-पंद्रह वर्ष गांव में ही बिताए। उसके बाद कानपुर और फिर दिल्ली में रहा। लेकिन अपने गांव से मेरा लगाव कभी कम नहीं हुआ और यहां आने-जाने का सिलसिला बना रहा। इतने गहरे और लंबे जुड़ाव के कारण यहां की स्मृतियां प्राय: जीवंत हो उठती हैं।
परौंख में ही प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मैंजूनियर हाई स्कूल की पढ़ाई करने के लिए खानपुर जा ता था। आज मैं प्राथमिक विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाध्यापक श्री शंभू दयाल त्रिपाठी जी को याद करना चाहता हूँ जिन्होने बड़ों का सम्मान करने और हर सुबह माता-पिता के पैर छूकर आशीर्वाद लेने की सीख दी थी।उस समय प्राथमिक शिक्षा के बाद की पढ़ाई के लिए यहां कोई विद्यालय नहीं था। मैं उसी समय यह महसूस करता था कि अगर यहीं पर माध्यमिक विद्यालय रहा होता तो शिक्षा के प्रति गहरी लालसा न रखने वाले बच्चे भी आगे की पढ़ाई कर पाते और शिक्षा के लाभ से वंचित न रहते। मैं सोचा करता था कि यदि मैंकभी किसी योग्य बन पाया तो यहां एक विद्यालय की स्थापना करवाऊंगा जिससे यहां के बच्चों को,खासकर बेटियों को शिक्षा के अवसर प्राप्त होंगे। हमारी पीढ़ी में बेटियों को पढ़ने के लिए गांव से बाहर भेजना लगभग नामुमकिनथा। इसलिए मेरे अंदर गांव में शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए एक ललक थी। इसी सोच के परिणामस्वरूप आज वीरांगना झलकारी बाई इंटर कॉलेज में पठन-पाठन की सुविधा यहां के बच्चों को मिल रही है। हाल ही में राज्य सरकार द्वारा इस विद्यालय का प्रांतीयकरण कर दिया गया है। इसके लिए मैं सभी ग्रामवासियों की ओर से मुख्यमंत्री जी को विशेष धन्यवाद देता हूं।
बहनो और भाइयो,
एक अदृश्य वायरस द्वारा फैलाई गई कोरोना महामारी ने मानव-समाज को बहुत आघात पहुंचाया है। लगभग सौ वर्षों के बाद पूरे विश्व को चपेट में लेने वाली ऐसी महामारी के दुष्परिणाम बहुत व्यापक और दुखद हैं। बहुत से लोगों ने अपने प्रिय-जनों को खोया है। इस महामारी को निर्मूल करने के लिए अभी भी अधिक से अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश, में महामारी से जुड़ी जांच, चिकित्सा, रोकथाम, जरूरतमंदों की सहायता और टीकाकरण के लिए सरकार द्वारा व्यापक और प्रभावी कदम उठाए गए हैं। इसके लिए राज्यपाल श्रीमती आनन्दीबेन पटेल और मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ प्रशंसा के हकदार हैं।
कोरोना महामारी ने स्वास्थ्य व चिकित्सा के प्रति जागरूकता को बढ़ाया है। सार्वजनिक और व्यक्तिगत स्वच्छता पर और अधिक ज़ोर देने की आवश्यकता है। कोरोना के संदर्भ में फ़िटनेस पर ध्यान देने और प्रति-रोधक क्षमता को बढ़ाने पर विशेष बल दिया जा रहा है।
पूरे देश में और उत्तर प्रदेश में भी टीकाकरण का अभियान चल रहा है। वैक्सीनेशन भी कोरोना महामारी से बचाव के लिए कवच की तरह है। इसीलिए मेरा सुझाव है कि आप सभी स्वयं तो टीका लगवाएं ही, दूसरों को भी वैक्सीनेशन के लिए प्रेरित करें।
बहनो और भाइयो,
मैं एक बार फिर शिक्षा के महत्व पर ज़ोर देना चाहूंगा। शिक्षा हमारी भावी पीढ़ी के लिए विकास के नए अवसर प्रदान करती है। मूल्य-परकऔर संस्कार-युक्त शिक्षा का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार होने से हमारा समाज संकीर्णताओं से बाहर निकल पाएगा, पारस्परिक सौहार्द को बल मिलेगा और सबकी ऊर्जा विकास के कार्यों में लगेगी।
मेरे प्यारे ग्रामवासियो,
कुछ महीनों पहले जब मैंअपनी चिकित्सा के लिएअस्पताल में था तो देश-विदेश से मुझे स्नेह और शुभकामनाओं से भरे संदेश मिलते रहे। मेरे गांव और इस क्षेत्र के लोगों ने जिस आत्मीयता के साथ मेरे स्वास्थ्य के लिए अनुष्ठान आयोजित किए, मंगलकामनाएं कीं, उसके लिए मैं आप सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूं।
आज यहां आस-पास के गांवों के नव-निर्वाचित ग्राम प्रधान भी उपस्थित हैं। इन सभी ग्राम प्रधानों को अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए मैं शुभकामनाएं देता हूं।
अपने गांव में आकर मुझे हमेशा एक विशेष आनंद का अनुभव होता है। गांव की हवा-पानी और मिट्टी में एक संजीवनी शक्ति होती है। आप सबके स्नेह से मुझे विशेष बल मिलता है। जन्मभूमि से जुड़े ऐसे ही आनंद और गौरव को व्यक्त करने के लिए संस्कृत काव्य में कहा गया है:
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
अर्थात
जन्म देने वाली माता और जन्मभूमि का गौरव स्वर्ग से भी बढ़कर होता है।
अपनी जन्मस्थली की आज की इस यात्रा ने मुझमें एक नई स्फूर्ति का संचार किया है। जब कभी मैं विदेशों में होता हूं तब भी भारत माता का गौरव सदैव मेरे हृदय में विद्यमान रहता है। इसी तरह, समाज और देश के लिए सेवा-भाव के साथ राष्ट्रपति भवन में काम करते हुए भी अपने गांव की याद मेरे हृदय में हमेशा बनी रहती है। आप सबका आत्मीयता भरा अभिनंदन और स्नेह मुझे हमेशा याद रहेगा। मैं आप सबको धन्यवाद देता हूं और आप सबके अच्छे स्वास्थ्य तथा मंगलमय भविष्य की कामना करता हूं।
जय हिन्द!