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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द के सम्मान में दिए एक सिविक समारोह में अभिभाषण

तिरुवनंतपुरम : 27.10.2017

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1. मैं आप सबका इस हार्दिक और भावपूर्ण स्वागत के लिए धन्यवाद करता हूं। मैं अत्यंत भावाभूत हो गया हूं। मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं अपने घर आ गया हूं। आप सबको इस स्वागत के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

2. मैं केरल में इस महीने दूसरी बार आने पर प्रसन्न हूं। और मुझे उससे भी ज्यादा खुशी है क्योंकि डॉ. के.आर. नारायणन केरल के एक विशिष्ट सपूत के जन्मदिन पर जो कि मेरे प्रेसिडेंशियल कार्यालय के पूर्ववर्ती भी रहे। आज सुबह राष्ट्रपति भवन में मैंने राष्ट्रपति केआर नारायण के चित्र पर श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके गृह राज्य के लिए हवाई जहाज में सवार हूआ। ऐतिहासिक रूप से केरल एक आध्यात्मिक भूमि है जिसकी आध्यात्मिक नेतृत्व की परंपरा और समाज सुधार की जो आदिशंकराचार्य से श्री नारायण गुरु से अयानकली और अन्य अनेक तक है। सबसे पहले आज मुझे आयनकली की प्रतिमा के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और यह याद हमेशा मेरे साथ रहेगा।

4. सदियों से आपका राज्य कुछ महान धर्मों का गृह रहा है। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और यहूदी संस्कृतियां बहुत पुरानी हैं और यहां की निकटतम- में इनका अस्तित्व है। उन्होंने एक दूसरे का सम्मान किया है। आज शांति की उस परंपरा को जीवित रखना महत्वपूर्ण है। कि हमारी सांस्कृतिक परंपराएं केरल और भारत की विरासत से लाभ उठाती रहें।

5. केरल की परंपराएं और वहां की आंतरिक सोच मानवीय, लोक उन्मुख और गणतांत्रिक रही है। यहां जोर दिए गए मानव विकास और स्वास्थ्य के प्रति सावधानी और शिक्षा देश की शेष लोगों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। स्वच्छता में आपकी उपलब्धियां प्रशंसनीय हैं। स्थानीय स्वयंसरकार और पंचायती राज में केरल ने दोबारा लोकतंत्र को गहन बनाया है। लोकतंत्र को पुष्ट किया है।

6. मानव विकास और लोक कल्याण पर दिया गया यह बल केरल में नया नहीं है। त्रावणकोर की राजशाही स्वतंत्रता से पहले सर्वाधिक प्रगतिशील राज्यों में से एक थी। और तब से शाही परिवार को इसके सुधार और कल्याण के उपायों के लिए याद किया जाता है। निश्चय ही इसे हमें राजरवि वर्मा जैसे महान कलाकार देने के लिए भी याद किया जाता है।

मित्रो,

7. भगवान के अपने देश की भारत के वैश्विक चेहरे के रूप में एक असाधारण और महत्वपूर्ण पहचान है। यह बहुत मायनों में सच भी है। एक तटीय राज्य होने के कारण केरल ने बाहर के देशों और संस्कृतियों के साथ भारत की संलग्नता में अग्रणी रहा है। यह व्यापार में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

8. 2000 वर्ष पूर्व रोमन जहाज मालाबार तट पर आया करते थे। उसके बाद अरब के व्यापारी जहाज और फिर यूरोप से केरल के तट पर मसालों की खोज करते हुए आए। उन्होंने पत्तनों की दक्षता और नैतिक प्रयासों के बारे में लिखा और केरल में उन प्रशासकों की ईमानदारी के बारे में लिखा जिनसे उनकी मुलाकात हुई। 15वीं शताब्दी में चीनी अन्वेषक जेन बार-बार केरल की तरफ आकर्षित हुआ और इस राज्य की काफी बार यात्रा की।

9. आज केरल अंतरराष्ट्रीय समुदाय को लगातार आकर्षित कर रहा है। अपका खूबसूरत राज्य भारत के अग्रणी पर्यटक गंतव्यों में से एक है। यहां के आयुर्वेद केंद्र असाध्य रोगों के उपचार और लोगों का मानसिक रूप से पुनरूद्धार में मदद करने के लिए पूरे विश्व में जाने जाते हैं। जैसा कि मुझे मालूम हुआ है आज टेक्नोसिटी प्रोजेक्ट लाँच करते समय मुझे ज्ञात हुआ है कि केरल में एक सूचना प्रौद्योगिकी निर्यात उद्योग भी है।

10. जैसे बाहरी लोग एक साथ केरला में आ गए हैं। केरला के लोगों को भी का एक यह परम आवश्यक है कि आप जो भी शिक्षा बच्चों को प्रदान कर रहें हैं, वह प्रयोगात्मक हो, स्वाभाविक रूप से अवलोकन और अनुभव पर आधारित हो, उसे जांच की कसौटी पर आंका गया हो और निश्चित रूप से खोजपूर्ण हो । आज आवश्यकता है विज्ञान, गणित और प्रौद्योगिकी की समस्याओं के समाधान ढूढ़ने की जिसके लिए बच्चों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हें स्थानीय और कम कीमत पर शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराकर, उसका प्रयोग करना सिखाना चाहिए, उन्नत व्यावहारिक गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए और शिक्षा को अन्य क्षेत्रों की तरह आकर्षक बनाना चाहिए। मेरा आपसे आग्रह है कि आप चिंतनशील और व्यावहारिक बनें, अपनी कक्षाओं के निरंतर अभ्यास से सीख हासिल करें और उसे अपने जीवन में अपनाएं तथा छात्रों में भी संचारित करें। इस पद्धति से आप सांस्कृतिक, बौद्धिक या लिंग भेद से ऊपर उठकर अपने विद्यार्थियों में बहुमुखी प्रतिभाओं और क्षमताओं को पहचान सकते हैं और उनका सम्मान कर सकते हैं।

11. जैसा कि सभी जानते हैं कि आज पठन-पाठन केवल चॉक से ब्लैकबोर्ड पर लिखने या बोलकर पढ़ाने तक ही सीमित नहीं रह गया है। सूचना और संचार तकनीकी के इस दौर में, इसमें पर्याप्त बदलाव आ गया है। ऐसे में यह और भी जरूरी हो गया है कि शिक्षक तेजी से बदलती हुई टैक्नॉलोजी के साथ कदम मिलाकर चलें और सुनिश्चित करें कि सभी बच्चे विशेषकर वे, जिन्हें बहुत जरूरत है, डिजीटल टैक्नॉलोजी से पूरा लाभ उठा सकें। इस प्रकार से हम टैक्नॉलोजी से फायदा लें, परन्तु ध्यान रहे कि हमें यह काम मानवीय भावना के साथ करना है।

12. मैं यहां पर उपस्थित सभी शिक्षकों और समस्त शिक्षक समुदाय से आग्रह करता हूं कि वे बच्चों को वैश्विक नागरिकता के लिए तैयार करते हुए, उनमें उच्च नैतिक शिक्षा और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा दें।हमारे भविष्य को निर्धारित करने के बारे में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वे सामाजिक रूप से जितने अधिक सचेत होंगे, अपने कर्त्तव्यों को निष्ठा से निभाएंगे, तार्किक मूल्यांकन में आने वाली बाधाओं के प्रति सतर्क रहेंगे, वे एक शिक्षित और सभ्य समाज का निर्माण करने में उतने ही सक्षम होंगे क्योंकि एक शिक्षक तब तक सच्चा शिक्षक नहीं हो सकता, जब तक कि वह स्वयं न सीख रहा हो औरएक दीपक तब तक दूसरे दीपक को नहीं जला सकता जब तक वह स्वयं न जल रहा हो।

13. मैं उम्मीद करता हूं कि आप शिक्षा पद्धति में बदलाव लाने के लिए बेहतर कुशलता, प्रतिबद्धता और समर्पण का प्रदर्शन करेंगे।

14. मैं भावी पीढ़ी को निष्ठा और ईमानदारी के साथ ज्ञान और शिक्षा प्रदान करने के लिए एक बार फिर यहां पर आए सभी शिक्षकों की सराहना करता हूं।

15. मैं भविष्य में आपके प्रयासों के सफल होने की कामना करता हूं। आप इस महान देश को सशक्त और बेहतर बनाने के पथ पर चलते रहें और इसे मजबूत और बेहतर बनाने में अपना योगदान देते रहें।

जय हिन्द।