भारतीय आर्थिक परिसंघ के शताब्दी समारोह के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन
गुंटूर : 27.12.2017
1. मुझे भारतीय आर्थिक परिसंघ के 100वें वार्षिक सम्मेलन में आकर प्रसन्नता हुई है। भारतीय अर्थशास्त्रियों की इस पेशेवर संस्था की स्थापना 1917 में हुई थी। यह लगभग 70000 विशिष्ट व्यक्तियों और संस्थाओं की सदस्यता के साथ हमारे देश के एक विशालतम शैक्षिक समुदाय के रूप में विकसित हुआ है।
2. मैं, इस उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए भारतीय आर्थिक परिसंघ और वास्तव में, आप सभी को बधाई देता हूं। श्रेष्ठता के आपके प्रयास और नीतिगत विकल्पों के अध्ययन ने हमारी विद्वता और जन विमर्श को समृद्ध किया है। परिसंघ के अनेक सदस्यों ने वित्त आयोग, प्रधानमंत्री की आर्थिक परामर्शी परिषद और हाल ही तक, योजना आयोग सहित अनेक नीति-निर्माण संस्थाओं में कार्य किया है।1917 से ही, परिसंघ की पत्रिका-‘इंडियन इकनॉमिक जर्नल’में सामयिक और प्रासंगिक शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं।
3. वार्षिक सम्मेलन एक महत्वपूर्ण समारोह है परिसंघ के सदस्य एक स्थान पर मिलते हैं। शताब्दी समारोह के अनुसार, इस वर्ष का विषय-‘भारतीय आर्थिक विकास: स्वतंत्रता के बाद के अनुभव’सारगर्भित है। मुझे ज्ञात है कि राजकोषीय नीति से लेकर विदेश व्यापार तथा कृषि से लेकर सामाजिक-आर्थिक असमानता जैसे व्यापक विषयों पर परिचर्चा की जाएगी। मुझे यह जानकर भी प्रसन्नता हुई कि संयुक्त राज्य, स्वीट्जरलैंड और मलेशिया देशों के प्रमुख अर्थशास्त्री इसमें भाग ले रहे हैं। बांग्लादेश के नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मुहम्मद युनूस आज के सम्माननीय अतिथि हैं। विकास अर्थशास्त्र में उनके कार्य ने समूचे महाद्वीप को गौरवान्वित किया है। मैं उनका और अन्य सभी अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों का हार्दिक स्वागत करता हूं।
4. अर्थशास्त्र विगत 100 वर्षों के दौरान एक आर्थिक विषय के रूप में अत्यंत विकसित हुआ है। यह एक ऐसा विषय है जिसमें इतिहास और भूगोल,दर्शन और नैतिकशास्त्र और गणित शामिल है। अर्थशास्त्र एक विशाल नदी के समान है जिसमें समाज विज्ञान से लेकर सांख्यिकी तक विविध धाराएं मिली हुई हैं। परन्तु इसका मूल केन्द्र मानव कल्याण है और रहेगा।
5. इससे ‘भारतीय विकास अनुभव’एक अत्यंत इतना महत्वपूर्ण विषय बन गया है। भारत विश्व की एक सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था है। विकास के बिना कोई प्रगति नहीं होती और पुन: वितरण की कोई गुंजाइश भी नहीं होती। यद्यपि, विकास आवश्यक है परंतु यह पर्याप्त नहीं है। हमारे समाज की असमानता को दूर करने, विभिन्न वर्गों और विभिन्न प्रदेशों के बीच सामाजिक और आर्थिक असमानता को समाप्त करने के लिए कल्पनाशील नीति-निर्माण आवश्यक है।
6. हमारे बहुत से देशवासी अभी भी गरीबी या उसके बहुत निकट जी रहे हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और नागरिक सुविधाओं तक उनकी पर्याप्त पहुंच नहीं है। यह पारंपरिक रूप से कमजोर तबकों विशेषकर अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों और वास्तव में महिलाओं के लिए सच है।2022 तक जब हमारा देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा, नए भारत के सपनों को पूरा करने के लिए इन मुद्दों पर ध्यान देना जरूरी है। हमें स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश को, मानव पूंजी, जो हमारी अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है में निवेश समझना होगा।
7. मैंने जिन बहुत से मुद्दों का उल्लेख किया है, वे वास्तव में भारतीय संविधान की राज्य सूची में है। उपयुक्त नीति तंत्र और शुरुआत द्वारा स्थानीय और राज्य स्तर पर उन पर ध्यान देने से भारतीय विकास अनुभव आगे बढ़ेगा। सहकारी संघवाद के युग में तथा चौदहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन के बाद जिसने राज्यों को और अधिक निधियां अंतरित की हैं, उनसे हमारे अनेक राज्यों पर दायित्व आ गया है और उनसे अपेक्षाएं भी की जाने लगी हैं।
8. विचारों के विकास के साथ-साथ निधियों के अंतरण को जोड़ना चाहिए। इससे राज्य लाभान्वित होंगे और अंतत: भारत की सामाजिक, विकासात्मक और समष्टि अर्थव्यवस्था की आवश्यकताएं पूरी हो पाएंगी।
9. इसी प्रकार, केन्द्र सरकार के साथ-साथ, मैं अपने अर्थशास्त्री वर्ग से आग्रह करता हूं कि वह हमारी राज्य सरकारों के साथ अधिकाधिक कार्य करें और उनके प्रदेशों और जनसांखिकीय स्वरूप के अनुसार परामर्श और सिफारिशें प्रदान करेंगे। मैं, इस संदर्भ में, आर्थिक विचारशीलता और पहल तथा नीति सिफारिशों को कुशलतापूर्वक धरातल पर उतारने में अग्रणी बनने के लिए, आन्ध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री, श्री एन. चन्द्रबाबू नायडू को बधाई देता हूं।
देवियो और सज्जनो,
10. मानव समाज एक मुकाम पर खड़ा हुआ है। विगत अनेक दशकों विशेषकर द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में विश्व के सम्मुख बहुत सी वास्तविकताएं सामने आ रहीं हैं। अर्थशास्त्र का क्षेत्र इन बदलावों से अछूता नहीं रहा है। हम एक ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं जहां अधिकांश समाज जिन्होंने अब तक उदारवादी व्यापार व्यवस्था का समर्थन किया था, संरक्षकवादी बनते जा रहे हैं। भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं पर आपस में जुड़े हुए ऐसे विश्व के पक्ष में मुखर होने की जिम्मेदारी है जहां ईमानदार और बढ़ता हुआ व्यापार बहुत से लोगों की मदद करता हो।
11. हमारे समक्ष महत्वपूर्ण घरेलू मुद्दे भी हैं। औपचारिक नौकरियों का युग धीरे-धीरे विशिष्ट विनिर्माण, सेवा क्षेत्र और डिजिटल अर्थव्यवस्था में रोजगार के अवसर तथा स्वरोजगार अवसर पैदा कर रहा है। चाहे हम इसे अनौपचारिक अर्थव्यवस्था या गिग अर्थव्यवस्था कहें जो कि इस समय एक लोकप्रिय पारिभाषिक शब्द है,चाहे हम सूक्ष्म वित्त या सामाजिक उद्यमिता के नियमों को अपनाएं, यह क्षेत्र बढ़ता ही जाएगा। हमें इसे समझना है और इसके अनुरूप नीतियां बनानी हैं। हमें ऐसे सामाजिक सुरक्षा उपाय और सुरक्षा युक्तियां निर्मित करनी होंगी, जिनसे हमारे कर्मियों की सुरक्षा हो।
12. मुझ यह जानकार प्रसन्नता हुई है कि भारत सरकार ने इन कमियों को पहचान लिया है। स्टार्ट-अप इंडिया, स्टैंड-अप इंडिया और मुद्रा तथा जन-धन योजना जैसी पहल, जिनसे करोड़ों लोग बैंकिंग प्रणाली में शामिल हुए हैं, का लक्ष्य ऐसे अंतर को समाप्त करना है।
13. हमारे अर्थशास्त्रियों के लिए ये सभी चुनौतियां और मुद्दे विचार और विश्लेषण करने तथा एक खाका प्रदान करने के लिए हैं। मुझे विश्वास है कि ये और अधिकांश दूसरे मुद्दे अगले कुछ वर्षों के दौरान इस सम्मेलन का हिस्सा बन जाएंगे। मुझे विश्वास है कि भारतीय आर्थिक परिसंघ द्वारा दूसरी शताब्दी में प्रवेश करने पर, परिसंघ और इसके सदस्य, हमारे राष्ट्र की विकास प्रक्रिया तथा हमारे लोगों के कल्याण से उसी प्रकार जुड़े रहेंगे,जिस प्रकार वे विगत 100 वर्षों से जुड़े रहे हैं।
14. मैं शेष सम्मेलन तथा आगामी नववर्ष के लिए आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद
जय हिन्द !