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केरल उच्च न्यायालय के हीरक जयंती समारोह के समापन समारोह में भारत के के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

कोच्चि: 28.10.2017

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1. भारत का राष्ट्रपति बनने के बाद केरल की मेरी यह दूसरी यात्रा है, परन्तु मैं अपने वर्तमान पद के अन्तर्गत पहली बार कोच्चि की यात्रा कर रहा हूं। विधिक पेशे की पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति के रूप में, मुझे माननीय केरल उच्च न्यायालय के हीरक जयंती के समापन समारोह में यहां उपस्थित होकर दोहरी खुशी हो रही है।

2. इस माननीय उच्च न्यायालय का 60 वर्षों का शानदार इतिहास रहा है। इसकी शुरुआत त्रावणकोर उच्च न्यायालय से हुई, जो 67 वर्ष तक कायम रहा। तत्पश्चात् इसका विलय कोचीन उच्च न्यायालय के साथ हो गया और 1949 में यह त्रावणकोर-कोचीन उच्च न्यायालय बन गया। 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद, 1 नवम्बर, 1956 को केरल की स्थापना हुई। इसमें त्रावणकोर-कोचीन राज्य और मद्रास प्रेजीडेंसी का पूर्व मालाबार का आपस में विलय हो गया। इससे माननीय केरल उच्च न्यायालय का भी सृजन हुआ।

3. वास्तव में, कुछ महान विधिवेत्ताओं ने इस माननीय उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के रूप में कार्य किया है। देश की प्रथम महिला उच्च न्यायालय न्यायाधीश, न्यायमूर्ति अन्ना चाण्डी, 1959 में यहां की न्यायाधीश बनीं। यह उस समय की एक असाधारण बात थी। छह वर्ष के बाद, 1965 में न्यायाधीश एलिजाबेथ लेन ब्रिटेन के उच्च न्यायालय की प्रथम महिला न्यायाधीश बनी थीं। इस प्रकार, महिला न्यायाधीश को प्रतिनिधित्व देते हुए, भारतीय न्यायपालिका बहुत से अन्य देशों से काफी आगे था। भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय की प्रथम महिला, न्यायमूर्ति एम.फतिमा बीवी भी केरल के माननीय उच्च न्यायालय से थीं। केरल के माननीय उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति, के.जी. बालाकृष्णन 2007 में भारत के मुख्य न्यायाधीश बने।

4. श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों और हमारे देश की विधि बिरादरी के सचेतक न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर को कौन भूल सकता है? वह 1968 में, इस माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बन गए। बाद में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय में रहते हुए, उन्होंने हमारे राष्ट्रीय जीवन पर एक अमिट छाप छोड़ी। उन्हें आज तक एक आदर्श के रूप में याद किया जाता है।


5. माननीय केरल उच्च न्यायालय को लोगों के अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता के प्रति संवेदनशीलता के लिए जाना जाता है। बार के सदस्यों में बहुत सी विधिक हस्तियां शामिल हैं, और शामिल हुई हैं। माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय ने हमारे देश के लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता की परंपरा को उदार बनाने में योगदान दिया है। उदाहरण के लिए, माननीय उच्च न्यायालय की पूर्ण खण्डपीठ का कहना था कि हिंसा के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष खतरों से समर्थित ‘बन्द’ का आह्वान गैर कानूनी है। यह माननीय उच्च न्यायालय पर्यावरणीय और पारिस्थितिकी नियमों व मापदण्डों के समर्थन में अग्रणी है। इसने निम्नवत महत्वपूर्ण निर्णय दिए है:

1. स्वच्छ वायु के लिए जन अधिकार

2. स्वच्छ जल के लिए जन अधिकार

3. स्वस्थ परिवेश के लिए जन अधिकार

4. राज्य के प्रमुख संवैधानिक दायित्व के रूप में नागरिकों को पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ पेय जल की आपूर्ति

5. सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध

6. न्यायपालिका भारत की एक सबसे मूल्यवान और सम्मानित संस्था है। इसके निर्णय और स्वतंत्र कामकाज तथा प्रतिष्ठा ने लोकतांत्रिक विश्व में भारत की विश्वसनीयता बढ़ा दी है। प्रत्येक भारतीय को न्यायपालिका पर गर्व है और इसके निर्णयों और हमारी राष्ट्रीयता को मूर्त रूप देने वाले मूल्यों के प्रति हमारी निष्ठा का सम्मान करता है। संवैधानिक ढांचा न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के तीन स्तंभों पर टिका हुआ है। हमारा संविधान संभवत: इन तीन संस्थाओं की भूमिकाओं के बीच संतुलन कायम करने वाला विश्व का सर्वोत्तम दस्तावेज है।

मित्रो,

7.न्याय प्रदान करने में देरी हमारे देश की एक बड़ी चिंता है। अकसर पीड़ित, हमारे समाज के सबसे गरीब और सबसे पिछड़े हुए लोगों में होते हैं, हमें शीघ्र मामलों का निपटान सुनिश्चित करने की प्रणालियां ढूंढ़नी चाहिए। हमें ऐसे तरीके पर विचार करना चाहिए जिससे अदालत की कार्यवाही को लम्बा खींचने की चालबाजी की बजाय उसे अपवाद के तौर पर आपातकालीन स्थिति में स्थगित किया जाए। हमें एक बेहतर तरीका खोजना चाहिए। मुझे यह उल्लेख करके प्रसन्नता हो रही है कि न्यायपालिका इस दिशा में अग्रसर है।

8. न्याय को जनता तक ले जाना ही नहीं बल्कि वादी पक्षों को उनकी भाषाएं हैं। उच्च न्यायालय अंग्रेजी में निर्णय देता है परन्तु हमारे देश में विविध भाषाओं वाले देश हैं। वादी अंग्रेजी के जानकार नहीं हो सकते और निर्णय के जरूरी बिन्दु उससे छूट सकते हैं। इसलिए वादी पक्षों को निर्णय के अनुवाद के लिए वकील या अन्य व्यक्ति पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे समय और लागत बढ़ती है।

9. संभवत: एक ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिसके द्वारा माननीय उच्च न्यायालय स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में निर्णय की प्रमाणित अनुदित प्रतियां उपलब्ध करवाए। यह कार्य निर्णय सुनाने के बाद 24 या 36 घंटों में किया जा सकता है। माननीय केरल उच्च न्यायालय में भाषा मलयालम या पटना उच्च न्यायालय में, जैसा भी मामला हो, हिन्दी हो सकती है।

10. मैंने केवल सुझाव दिया है। न्यायपालिका और विधिक समुदाय को इस पर विचार-विमर्श करना है और उपयुक्त निर्णय लेना है।

मित्रो,

11. हमारा समाज और अर्थव्यवस्था अधिक जटिल और विश्व प्रणाली के साथ और अधिक एकीकृत हो गई है। न्यायपालिका के समक्ष चुनौतियां भी बढ़ गई हैं। हमारे न्यायालयों के समक्ष आने वाले विवादों का स्वरूप और मामले धीरे-धीरे बदल चुके हैं। व्यापार कानून तथा वित्तीय बाजारों में कामकाज की गति और विकास; बौद्धिक संपदा और प्रौद्योगिकी का बदलता स्वरूप; तथा डिजीटल क्षेत्र तथा इंटरनेट विधि और शासन के भी उभरते नियम-ये नए प्रश्नों और रूपरेखाओं के कुछ उदाहरण हैं जिनसे न्यायपालिका को जूझना पड़ता है। इसने यह कार्य सराहनीय तौर से प्रबुद्धता और विचारपूर्वक किया है।

12. तथापि, इन चुनौतियों का स्वरूप आने वाले वर्षों में विशेषकर प्रौद्योगिकी भी तेजी के साथ और बढ़ेगा। हमारी न्यायपालिका और न्याय प्रदान करने वाले तंत्र को प्रौद्योगिकी तथा हमारे समाज के बदलाव के साथ बने रहना होगा, वैसे वे वास्तव में यह कार्य समुचित प्रकार से कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि वे इसे पूरी क्षमता से पूरा करते रहेंगे।

13. हमारी विधिक प्रणाली, स्वतंत्र न्यायपालिका की अपनी आधारशिला के साथ, हमारी राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का एक प्रमुख भाग है। यह उपचारी तत्व के रूप में कार्य करता है और यह विधि और प्राकृतिक न्याय की पवित्रता को कायम रखता है। यह संविधान में निहित नैतिक सिद्धातों के संरक्षण के रूप में भी कार्य करता है। इससे प्रत्येक न्याय प्रदान करने वाली प्रक्रिया के साथ हर एक कार्य राष्ट्र-निर्माता के रूप में जुड़ा रहता है। न्यायिक अधिकारी और न्यायालय अधिकारी अर्थात अधिवक्ता, दोनों न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली में मदद करते हैं, राष्ट्र निर्माता हैं। उनपर, मुझे कहना चाहिए एक भारी दायित्व है।

14. इसीलिए जब भी आप अदालत में जाएं तो सजग रहें कि इस देश के आम नागरिक आपकी ओर देख रहे हैं, आपसे उम्मीदें लगा रहे हैं। हमारे आम नागरिक को यह दृढ़ विश्वास और आस्था है कि न्यायपालिका सदैव उनके साथ है और वह कभी उन्हें निराश नहीं करेगी। मुझे विश्वास है कि न्यायपालिका लोगों की उच्च अपेक्षाओं पर खरा उतरेगी।

15. अन्त में, मैं एक बार पुन: इस हीरक जंयती पर माननीय केरल उच्च न्यायालय और राज्य की जनता को बधाई देता हूं। मैं माननीय उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, बार के सदस्यों और इससे संबंधित सभी भागीदारों को शुभकामनाएं देता हूं।


धन्यवाद,


जय हिन्द !