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सिस्टर निवेदिता की 150वीं जयंती समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

रामकृष्ण मिशन, नई दिल्ली: 28.10.2017

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1. मुझे सिस्टर निवेदिता की 150वीं जयंती समारोह के उपलक्ष्य में यहां उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता हुई है। भारत के राष्ट्रपति के रूप में पदग्रहण करने के बाद यह रामकृष्ण मिशन की मेरी पहली यात्रा है, परन्तु मैं मिशन और इसके कार्य से भलीभांति परिचित हूं। मैंने पहले भी अनेक बार व्यक्तिगत रूप से इस स्थान की यात्रा की है। मैं रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं के प्रति आकर्षित रहा हूं। उन्होंने मुझे कोलकाता के निकट दक्षिणेश्वर मंदिर और बेलूर मठ के दर्शन करने की प्रेरणा दी है। इस प्रकार मैं अनेक पहलुओं को देखते हुए,मैं आज मित्रों के बीच हूं।

2. स्वामी विवेकानंद हमारी आधुनिक राष्ट्रीय चेतना को आकार देने वाले व्यक्तियों में से एक थे। उन्होंने न केवल हमारेबल्कि विश्व के लिए भी भारतीय मूल्यों की पुन:खोज की। वह एक सच्चे सांस्कृतिक दूत थे जिसका परिचय1893 की धर्म संसद में शिकांगो की उनकी यात्रा से मिलता है।

3. स्वामी विवेकानंद एक संन्यासी और आध्यात्मिक गुरुसे कहीं अधिक थे।वह एक संस्थान निर्माता और राष्ट्र निर्माता थे। कुछ दिन पहले,मुझे बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों से बातचीत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मुझे ज्ञात हुआ कि भारतीय विज्ञान संस्थान का बीजारोपण एक ही जलयान पर संयुक्त राज्य की यात्रा करते समय स्वामी विवकानंद और जमशेदजी टाटा की बातचीत से हुआ था।

4. स्वामीजी धर्म संसद में जा रहे थे जमशेदजी टाटा एक ऐसे प्रौद्योगिकीविद की तलाश मेंजा रहे थे जो भारत में इस्पात संयंत्र बनाने में उनकी मदद कर सके और हमारे देश में एक प्रमुख औद्योगिक सुविधा स्थापित करने का उनका सपना पूरा हो सके। दोनों एक नए और बेहतर भारत के स्वप्न के साथ यात्रा कर रहे थे। दोनों का जलयान पर एक दूसरे से परिचय हुआ। अपनी बातचीत के दौरान,स्वामीजी ने जमशेदजी से भारत में एक विश्वस्तरीय वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान स्थापित करने का आग्रह किया। एक महत्वपूर्ण सम्मेलन के लिए अमेरिका की यात्रा करते हुए भी,उनका मन अपने देश, हमारी आवश्यकताओं और इसके भविष्य पर लगा हुआ था।

5.स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिकता और विद्वता, आदर्शवाद और व्यावहारिक विचारशीलता को आपस में मिलाया। उनकी विरासत रामकृष्ण मिशन में प्रतिबिंबित होती है, जोस्वयं 120 वर्ष पुराना है और निरंतर मजबूती से आगे बढ़ा है। यह किसी व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहा है परन्तु इसने मज़बूत संस्था तथा चेतना व एकता की संस्कृति स्थापित की। इससे उसे अत्यधिक विषम हालात और स्थानों पर सामाजिक और सार्वजनिक कल्याण कार्य करने मेंसहायता मिली है।

6. मिशन की शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल पहल,हमारे देश भर के विद्यालयों और अस्पतालोंमें देखी जा सकती है। सराहनीय बात यह है कि रामकृष्ण मिशन के संन्यासी और कार्यकर्ता सबसे पिछड़े हुए समुदायों के घरों तक गए हैं।

7. पूर्वोत्तर के भागों में और हमारे सीमावर्ती राज्य अरुणाचल प्रदेश में, रामकृष्ण मिशन एक अग्रणी संस्थान रहा है। मैंने वह निष्ठा देखी है जिसके साथ रामकृष्ण मिशन ने नारायणपुर के बेहद गरीब और अति पिछड़े जनजातीय समुदायों के बीच रह कर काम किया है। यह सही अर्थों में सेवा अर्थात जन सेवा का एक उल्लेखनीय और सच्चा उदाहरण है।

8. मैं कई बार महसूस करता हूं कि नारायणपुर की यात्रा तथा रामकृष्ण मिशन के कार्य को अनुभव करना हमारे युवा सिविल सेवकों के प्रशिक्षण का भाग होना चाहिए। वे व्यावहारिक तौर पर राष्ट्र निर्माण देख सकेंगे।

मित्रो,

9. रामकृष्ण मिशन की बाह्य उपलब्धियां इसकी अन्तरात्मा तथा इसके आध्यात्मिक गुरुओं के ज्ञान कीझांकी है। रामकृष्ण मिशन के साधुओं और संन्यासियों ने विश्व के सुख और खजानों को त्याग दिया है, परन्तु उन्होंने ज्ञान और मोक्ष को नहीं त्यागा है।

10. वे विद्वान हैं और सीखने का निरंतर प्रयास करते हैं । रामकृष्ण मिशन में उच्च शिक्षा प्राप्त स्वामियों और साधुओं का होना कोई सामान्य बात नहीं है,उनमें से कुछ ने डॉक्टरेट और पीएचडी की हुई है। वे आध्यात्मिकता को उच्च ज्ञान के साथ जोड़ते हैं और हम सभी के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। संस्थानों के प्रबंधन में भी उनकी ईमानदारी सराहनीय है।

11. इन्हीं विशेषताओं के कारण, सिस्टर निवेदिता स्वामी विवकानंद से प्रभावित हुईं और उन्हें गुरु के रूप में स्वीकार किया। वहआयरलैंड में पैदा हुई थीं और ऐसे समय में भारत आईं जब हमारे दोनों देश औपनिवेशिक शासन के अधीन थे। वे न केवल राजनीति बल्कि सांस्कृतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने का प्रयास कर रहे थे।

12. उस दौरान आयरिश और भारतीय राजनेताओं के बीच अनेक बार संपर्क हुआ परन्तु स्वामीजी और सिस्टर निवेदिता के बीच का संपर्क अद्वितीय था। उन्होंने एक-दूसरे को पत्र लिखे जिनमें मूल्यों तथा गुरु और शिष्या के बीच गरिमामय संगति के प्रति उनकी वचनबद्धता दिखाई देती है।

13. स्वामी विवेकानंद द्वारा सिस्टर निवेदिता को संस्कृत में लिखे दो उद्धरण उल्लेखनीय हैं,ये हमें उनकी विचारशीलता और दर्शन तथा रामकृष्ण मिशन की परंपरा की झलक दिखलाते हैं।

14. सिस्टर निवेदिता को अपने पहले पत्र में स्वामीजी ने कहा कि उनके जीवन का मंत्र है: वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपिअर्थात ‘पत्थर से अधिक कठोर;पुष्प से अधिक कोमल।’ इससे दैनिक जीवन के व्यावहारिक पहलुओं के साथ कर्म के आदर्श को संतुलित करने की स्वामीजी की योग्यता का पता चलता है।

15. दूसरे पत्र में स्वामी जी ने सिस्टर निवेदिता को लिखा कि: नहि कल्याण कृत्किश्चित् दुर्गतिं तात गच्छति अर्थात‘जो व्यक्ति हमारी भलाई करता है,उसका कभी बुरा नहीं होता ....’

16. वास्तव में स्वामीजी के ये दोनों कथन आज भी रामकृष्ण मिशन के महत्वपूर्ण दृष्टिकोणबने हुए हैं।

मित्रो,

17. सिस्टर निवेदिता का वास्तविक नाम मारग्रेट नोबेल था। अपने नाम को चरितार्थ करते हुए, उन्होंने नेकनीयत से भारत की सेवा की। वह भारत में बालिका शिक्षा और गरीबों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने में आगे थीं, वह एक पश्चिमवासी थीं परन्तु उन्होंने पूरी तरह भारत को अपनाया तथा अपने हृदय और मन से भारत व भारतीयों की बेहतरी के लिए जीवन जिया और प्राण त्याग दिए।

18. भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता ने सदियों से अन्य देशों के लोगों को आकर्षित किया है।ऐसा माना जाता है कि प्रसिद्ध विश्वविद्यालय तक्षशिला जहां कौटिल्य और अन्यों ने अध्ययन किया था,बेबीलोन और यूनान के विद्यार्थियों को आकृष्ट किया। चीन और अन्य देशों के बौद्ध भिक्षु नालंदा आए। आज योग और विपासना के प्रति विश्वभर के लोगों की रुचित तथा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रति आकर्षण एक अन्य उदाहरण है।

19. सिस्टर निवेदिता इस परंपरा की हिस्सा थीं और वह ज्ञान के लिए भारत में स्वामीजी के पास आईं। वह विशिष्ट थीं। वह थोड़े समय या कम सीखने के लिए नहीं आई थीं। उन्होंने बहुत कुछ सीखा और यहीं रहने लगीं। उन्होंने भारत को अपने जीवन का मिशन बना लिया। यद्यपि वह लंदन में पैदा हुईं परन्तु वह भारतीय राष्ट्र निर्माता बन गईं।

20. उनकी 150वीं जयंती पर,मैं उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। मैं रामकृष्ण मिशन को हमारे लोगों की सेवा के लिए शुभकामनाएं देता हूं।


धन्यवाद !


जय हिन्द!