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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का राष्ट्रीय जल पुरस्कार वितरण समारोह में सम्बोधन

नई दिल्ली : 29.03.2022

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तृतीय ‘राष्ट्रीय जल पुरस्कार वितरण समारोह’ और ‘जल अभियान’ के तीसरे चरण के शुभारंभ के इस महत्वपूर्ण अवसर पर आज यहां आप सब के बीच आकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। जल-प्रबंधन के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्यों को सम्मानित करने का तथा जल-अभियान के विस्तार द्वारा अपने दैनिक जीवन में तथा पृथ्वी पर, जल के महत्व को रेखांकित करने का यह प्रयास सराहनीय है।

यह कहना सर्वथा उपयुक्त है कि ‘जल ही जीवन है’। प्रकृति ने मानवता को जल संसाधन का वरदान दिया है। प्रकृति ने हमें विशाल नदियां प्रदान की हैं, जिनके तटों पर महान सभ्यताएं फली-फूलीं।भारतीय संस्कृति में नदियों का विशेष महत्व है और मां के रूप में उनकी पूजा की जाती है। प्रतिदिन स्नान करने से पहले बहुत से लोग यह पाठ करते हैं:

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।

नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मि न्सन्निधिं कुरु॥

लोग प्रार्थना करते हैं कि उनके स्नान के जल में इन पवित्र नदियों की जल-राशियों के प्रभावका संगम हो। उत्तराखंड में गंगा और यमुना, मध्य प्रदेश में नर्मदा, बंगाल में गंगा-सागर की पूजा-अर्चना हेतु, नदियों के लिए समर्पित स्थान दुनिया में और कहां मिलेंगे? ऐसी धार्मिक प्रथाओं ने प्रकृति से हमारा नाता जोड़े रखा। जलाशयों और कुओं का निर्माण करना परम-पुण्य कार्य माना जाता था।

दुर्भाग्य से आधुनिकता और औद्योगिक अर्थव्यवस्था के आगमन केबाद हम प्रकृति के साथ उस तरह के जुड़ाव से वंचित हो गए हैं। जनसंख्या वृद्धि भी इसका एक कारण है। हम स्वयं को उस माता-तुल्य प्रकृति से कटा हुआ महसूस करते हैं जिसने वस्तुतः हमें पाला-पोसा है। हम यमुना नदी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने और प्रार्थना करने के लिए यमुनोत्री की कठिन यात्रा तो करते हैं। लेकिन जब हम राजधानी दिल्ली लौटते हैं तो देखते हैं कि वही नदी अत्यंत प्रदूषित हो गई है, और अब हमारे नगर के जीवन के लिए उपयोगी नहीं रह गई है।

सालभर शहरों को पानी उपलब्ध कराने वाले तालाब और जलाशय जैसे जल-स्रोत भी शहरी करण के दबाव में लुप्त हो गए हैं। ऐसे कारणों से जल प्रबंधन अस्त-व्यस्त हो गया है। भू-जल की मात्रा में कमी हो रही है और उसका स्तर भी नीचे होता जा रहा है। एक तरफ शहरों की जल-आपूर्ति के लिए दूर-दराज के स्रोतों का उपयोग करना पड़ता है तो दूसरी तरफ मानसून के दौरान शहरों की सड़कें और गलियां पानी में डूब जाती हैं।

जल प्रबंधन की इस विडम्बना के बारे में पिछले कुछ दशकों के दौरान वैज्ञानिक औरइस क्षेत्र में सक्रिय लोग अपनी चिंता भी व्यक्त करते रहे हैं। भारत में यह समस्या और गंभीर हो जाती है क्योंकि हमारे देश में विश्व की लगभग 18 प्रतिशत आबादी है, जबकि जल-संसाधनों के मात्र 4 प्रतिशत स्रोत ही हमारे पास हैं। जल की उपलब्धता अनिश्चित है और काफी हद तक बारिश पर निर्भर करती है।

देवियो और सज्जनो,

जल का मुद्दा, जलवायु परिवर्तन के और भी विशाल संकट का एक हिस्सा है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन हो रहा है, बाढ़ और सूखे की स्थितियां बार-बार तथा अधिक गंभीर रूप में उपस्थित हो रही हैं। हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं, और समुद्र का जल-स्तर बढ़ रहा है। ऐसे परिवर्तनों के गंभीर दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं जिनका किसानों, महिलाओं और निर्धन वर्ग के लोगों के जीवन पर और भी अधिक बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

हम सब जानते हैं कि आज से तीन-चार दशक पहले तक सामान्य व्यक्ति को पीने का पानी खरीदना नहीं पड़ता था। उसके लिए पेयजल सुलभ था। लेकिन बाद में देश के कई क्षेत्रों से water riots के चिंता-जनक समाचार आने लगे। आज जल संकट एक अंतरराष्ट्रीय संकट का रूप ले चुका है। जल संकट से जुड़ी स्थितियां भयावह रूप ले सकती हैं। कुछ रक्षा विशेषज्ञों ने तो यहां तक कहा है कि भविष्य में यह विश्व युद्ध का एक प्रमुख कारण भी बन सकता है। ऐसी स्थितियों से मानवता को बचाने के लिए हम सभी को सचेत रहना होगा। मुझे प्रसन्नता है कि भारत सरकार इस दिशा में प्रभावी कदम उठा रही है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सामना करना और अपनी पृथ्वी की रक्षा करना, हम सबके समक्ष एक विशाल चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए हमने नई सोच और कार्य-प्रणाली अपनाई है। भारत सरकार ने 2014 में ‘पर्यावरण और वन मंत्रालय’ का नाम बदलकर तथा ‘जलवायु परिवर्तन’ को शामिल कर के बदलाव का आरंभिक संकेत दिया। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए, सन 2019 में, दो मंत्रालयों को मिलाकर, ‘जल शक्ति मंत्रालय’ का गठन किया गया। इस पहल के पीछे भारत सरकार का यह सुविचारित निश्चय है कि जल के मुद्दे पर एकीकृत और समग्र रूप से कार्य करना है तथा इसे सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करना है।

मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और जल सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु जल के सक्षम उपयोग, जल-स्रोतों के संरक्षण, प्रदूषण को न्यूनतम स्तर तक कम करने और स्वच्छता सुनिश्चित करने के प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं।

हाल के वर्षों में, सरकार की नीतियों के तहत नदियों का कायाकल्प करने, नदियों की घाटियों के सर्वांगीण प्रबंधन, जल सुरक्षा को स्थायी रूप सेमजबूत बनाने के लिए बहुत समय से लंबित सिंचाई परियोजनाओं को शीघ्रता से पूरा करने और मौजूदा बांधों का सक्षम उपयोग करने को विशेष प्राथमिकता दी गई है।

देवियो और सज्जनो,

पानी के मुद्दे से हर व्यक्ति को जोड़ने और ‘जल आंदोलन’ को ‘जन आंदोलन’ बनाने के उद्देश्य से, सरकार ने 2019 में 'जल शक्ति अभियान' का आरंभ किया।और उसी वर्ष ‘जल जीवन मिशन’ का भी शुभारंभ किया गया। जल-संरक्षण तथा जल-स्रोतों को री-चार्ज करने केराष्ट्रीय आह्वान के बाद करोड़ों नागरिक इस अभियान में शरीक हुए।

पिछले वर्ष 22 मार्च को, यानि ‘विश्व जल दिवस’ के अवसर पर, प्रधानमंत्री द्वारा 'जल शक्ति अभियान: कैच द रेन’ प्रकल्प शुरू किया गया था। जल शक्ति अभियान के उस दूसरे चरण को पिछले साल मार्च से नवंबर तक, मानसून के आगमन के पहले और मानसून के दौरान, देश के सभी जिलों में, ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में चलाया गया।

मैं सभी राज्य सरकारों को भी बधाई देता हूं, जिन्होंने कोरोना महामारी की चुनौतियों का सामना करने के साथ-साथ इस जल-अभियान की सफलता में भी सराहनीय योगदान दिया।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि यह अभियान, इस वर्ष भी 29 मार्च, यानि आज से 30 नवंबर तक, सभी जिलों में चलाया जाएगा। इस बार के अभियान में स्प्रिंगशेड का विकास, जल-ग्रहण क्षेत्रों की सुरक्षा और जेंडर मेन-स्ट्रीमिंग जैसे नए पहलू भी शामिल किए गए हैं। जेंडर मेन-स्ट्रीमिंग पर ज़ोर देने से निश्चित रूप से जल-प्रबंधन में महिलाओं की भूमिका और बढ़ेगी।

मुझे 'जल शक्ति अभियान: कैच द रेन 2022' का शुभारंभ करते हुए प्रसन्नता हो रही है। मैं सभी से आग्रह करता हूं कि अभियान के इस चरण के दौरान प्रमुख गतिविधियों की सफलता हेतु पूरी कर्मठता से अपना योगदान करें। जल-संरक्षण के कार्य में प्रत्येक व्यक्ति की सक्रिय भागीदारी के लिए, स्थानीय जनता कोप्रेरित करने में जिलाधिकारियों और सरपंचों को मार्गदर्शक की महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

आज हम सभी यह संकल्प लें कि जिस तरह इतिहास का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान भारत में चलाया जा रहा है, उसी प्रकार हम सब इसअभियान को भी इतिहास का सबसे बड़ा जल-संरक्षण अभियान बनाएंगे।

देवियो और सज्जनो,

मैं जल शक्ति मंत्रालय को राष्ट्रीय जल-पुरस्कारों के आयोजन के लिए बधाई देता हूं। राज्यों, पंचायतों, जिलों, स्कूलों, उद्यमों, विभिन्न संगठनों तथा व्यक्तियों को जल-प्रबंधन के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य के लिए प्रोत्साहित करना और ऐसे कार्य को पुरस्कृत करना एक अच्छा ईको-सिस्टम बनाने में बहुत सहायक सिद्ध होगा।

मैंने इस तथ्य पर ध्यान दिया है कि पुरस्कार-विजेताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में जल-प्रबंधन हेतु अनुकरणीय कार्य किए हैं। ऐसे उदाहरणों के आधार पर हम जल-सुरक्षा से युक्त भविष्य के प्रति आशान्वित हो सकते हैं। मैं सभी पुरस्कार-विजेताओं को बधाई देता हूं। साथ ही मैं विजेताओं से यह अनुरोध भी करता हूं कि आप सब, इसी प्रकार या इससे भी आगे बढ़कर, अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते रहें और सभी के लिए प्रेरणा-स्रोत बने रहें। यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि ऐसे पुरस्कारों के बारे में जानकर, देश के जन-जन के हृदय में जल-चेतना का संचार होगा। जल-चेतना को जन-चेतना से जोड़ना ही सबसे महत्वपूर्ण कदम भी है, और उपलब्धि भी।

मुझे विश्वास है कि ऐसे प्रयासों के बल पर, सरकार का 'जल समृद्ध भारत' का विजन यथार्थ रूप ले सकेगा। मैं पुनः, राष्ट्रीय जल पुरस्कार विजेताओं और इस प्रक्रिया से जुड़े जल-शक्ति मंत्रालय के सभी लोगों को बधाई देता हूं।‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के संदर्भ में हम सबका यह लक्ष्य होना चाहिए कि भारत माता फिर से ‘सुजला’ होगी और उसके परिणाम-स्वरूप, ‘सुफला’ बनेगी।अतः इस अभियान से जुड़े सभी लोगों को मैं शुभकामनाएं देता हूं कि वे अपने प्रयासों में सफलता के कीर्तिमान स्थापित करें।

धन्यवाद,

जयहिन्द!