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भारत के राष्ट्र्पति, श्री राम नाथ कोविन्द का अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मे्लन के 59वें महाधिवेशन और शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद महाविद्यालय के नव-निर्मित भवन के वर्चुअल लोकार्पण के अवसर पर संबोधन

उज्जैन :29.05.2022

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भारतीय संस्कृति की अनुपम धरोहर और भारत की प्राचीनतम नगरियों में से एक नगरी- उज्जयिनी में आयोजित,अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्‍मेलन के 59वें महाधिवेशन में आप सबके बीच आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है।

अवंतिका, प्रतिकल्पा और अमरावती जैसे पौराणिक नामों को धारण करने वाली यह नगरी,योग-वेदांत, पर्व-उत्सव,धर्म-दर्शन, कला-साहित्य,और आयुर्वेद-ज्योतिष की नगरी है। यह नगरी, कृष्ण और सुदामा को शिक्षा देने वाले महर्षि सांदीपनि के गुरुकुल की नगरी है। यह भूमि ,भूतभावन भगवान महाकाल, मंगलकारी भगवान मंगलनाथ, योगी मत्स्येन्द्रनाथ, सम्राट विक्रमादित्य,महाकवि कालिदास ,महाकवि भास और भवभूति आदि जैसी अनेक महान विभूतियों की भूमि है। इसके साथ ही ,यह,प्रकांड ज्‍योतिषविद्, साहित्‍यकार और स्‍वाधीनता सेनानी पंडित सूर्य नारायण व्‍यास की जन्‍म-भूमि भी है। भारत के गौरव, सम्राट विक्रमादित्‍य और महाकवि कालिदास की यशोगाथा को अमर बनाने वाले विक्रम विश्‍वविद्यालय, विक्रम कीर्ति मंदिर, कालिदास परिषद् और कालिदास समारोह की प्रेरक शक्‍ति के रूप में वे हम सब के आदर के पात्र हैं। मैं, उज्‍जैन की इस पुण्‍य-भूमि को नमन करता हूं।

मुझे बताया गया है कि आज से लगभग 115 वर्ष पहले 1907 में अखिल भारतीय आयुर्वेद महा-सम्मेलन की स्थापना पवित्र गोदावरी नदी के किनारे स्थित कुंभ नगरी नासिक में की गई थी। आज,पवित्र क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित एक अन्य कुंभ नगरी उज्जैन में इसका 59वां अधिवेशन आयोजित किया जा रहा है। इस सुखद संयोग के परिणाम देश और दुनिया के लिए कल्याणकारी होंगे, इस विश्वास के साथ महासम्मेलन को संबोधित करना मेरे लिए गौरव का विषय है।

यह स्‍मरण रखा जाना चाहिए कि भारतीय संस्‍कृति की एक अमूल्‍य धरोहर को लोकप्रिय बनाने के लिए कार्यरत इस संस्‍था की स्थापना एवं विस्तार में श्री शंकरदाजी पदे,महामना मदन मोहन मालवीय, कोचीन नरेश श्रीराम वर्मा,और श्री बृहस्पति देव त्रिगुणा जैसे मनीषियों ने अमूल्य योगदान किया है। महासम्मेलन को,मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और श्री प्रणव मुखर्जी तथा यशस्वी पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी सहित अनेक महानुभावों का सान्निध्य एवं मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है।

देवियो और सज्जनो,

मुझे यह जानकर हर्ष हुआ है कि अपने स्‍थापना-काल से ही यह महासम्‍मेलन, आयुर्वेद विज्ञान को भारत की राष्‍ट्रीय चिकित्‍सा पद्धति बनाने के लिए कार्य करता रहा है। संस्था के प्रयासों के परिणामस्वरूप देश में कई महत्‍वपूर्ण राष्ट्रीय संस्‍थानों की स्थापना की गई है। मुझे बताया गया है कि श्री बृहस्‍पतिदेव त्रिगुणा सहित अनेक आयुर्वेद विद्वानों ने विदेशों में भी आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में महत्‍वपूर्ण भमिका निभाई है। यह जानकर गौरव होता है कि वर्तमान में मॉरीशस सहित विश्‍व के लगभग बीस देशों में आयुर्वेद में अनुसंधान कार्य किया जा रहा है।

भारत सरकार ने समय-समय पर भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अनेक उपाय किए हैं। परन्तु, वर्ष 2014 में पृथक् आयुष मंत्रालय की स्थापना के बाद से इस कार्य में और भी तेजी आई है। भारत सरकार से संबंधित विभिन्‍न अनुसंधान परिषदों ,राष्‍ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ, राष्‍ट्रीय आयुर्वेद संस्‍थान,अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्‍थान आदि संस्‍थाओं द्वारा आयुर्वेद के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए गए हैं। इसके लिए मैं भारत सरकार के आयुष मंत्रालय को बधाई देता हूं।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने योग एवं भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में सदैव विशेष रुचि प्रदर्शित की है। इस सम्मेलन के आयोजन में और शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद महाविद्यालय के आधुनिक भवन के निर्माण में भी प्रदेश की सरकार का भरपूर योगदान रहा है। कल भोपाल में, स्वास्थ्य क्षेत्र की अनेक परियोजनाओं के शिलान्यास/लोकार्पण का भी अवसर मुझे प्राप्त हुआ। चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ाने की दृष्टि से किए जा रहे इन सभी प्रयासों को देखकर यह विश्वास मजबूत होता है कि राज्यपाल श्री मंगूभाई सी. पटेल के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री श्री चौहान के नेतृत्व में चिकित्सा सुविधाओं को मध्य प्रदेश में लगातार संबल मिलता रहेगा और यह प्रदेश ,आयुर्वेदिक चिकित्सा का भी पसंदीदा गंतव्य बनेगा।

देवियो और सज्जनो,

विश्‍व भर में अनेक चिकित्‍सा पद्धतियां प्रचलित हैं,परन्‍तु आयुर्वेद इन सबसे अलग है। आयुर्वेद का अर्थ है -साइंस ऑफ लाइफ अर्थात् आयु का विज्ञान। विश्व में प्रचलित अनेक चिकित्सा पद्धतियों के साथपैथी शब्द जुड़ा होता है। पैथी - अर्थात् रोग हो जाने पर उसका उपचार करने की पद्धति। परन्तु आयुर्वेद में ,स्वास्थ्य रक्षा के साथ-साथ रोग-निवारण पर भी बल दिया जाता है।

ऐसे सर्व-हितकारी आयुर्वेद का परंपरागत ज्ञान हमारे पास है,यह हमारा सौभाग्य है। परंतु आज का समय शोध एवं अनुसंधान का,प्रमाणन का और गुणवत्ता का समय है। यह समय, आयुर्वेद के ज्ञान को अधिकाधिक गहराई से समझने, वैज्ञानिक कसौटी पर कसकर खरा उतरने तथा वर्तमान समय की आवश्यकताओं के अनुसार, तकनीकी मापदंडों को परिमार्जित कर विश्‍व को देने का है।

देवियो और सज्जनो,

अभी हाल ही में, गुजरात के जामनगर में डब्‍ल्‍यूएचओ ग्‍लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन की स्थापना से यह पुष्टि होती है कि विश्‍व अब हमारी पारंपरिक चिकित्‍सा पद्धतियों को स्‍वीकार करने के लिए तैयार है। इससे, आप सभी का दायित्‍व और भी अधिक हो गया है।

आज से हजारों वर्ष पहले चरक संहिता में कहा गया था कि भोजन करने से पहले हाथ, पांव व मुंह धोना आवश्यक है। ऐसा करने से शारीरिक स्वच्छता बनाए रखने के साथ-साथ बीमारी से भी बचा जा सकता है। हमारे ऋषियों ने महामारी से बचने के तरीके भी बताए हैं ,जो आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रमाणित हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान आयुर्वेद की ओर लोगों का रुझान बढ़ा है। इसके माध्यम से लाखों लोगों के जीवन की रक्षा संभव हुई है।

भारत ने सदैव पूरे विश्व के कल्याण और सुख की कामना की है। हम,एक ओर यह चाहते हैं कि हमारा हैल्थ सैक्टर विकसित हो,वहीं, दूसरी ओर यह भी चाहते हैं कि लोग कम बीमार पड़ें, निरोगी रहें ,और सुखी रहें।

हमारा स्वास्थ्य हमारे आहार,व्‍यवहार और यहां तक कि हमारी दिनचर्या पर आधारित होता है। हमारी दिनचर्या कैसी हो, ऋतुचर्या कैसी हो, और औषध से भी पहले हमारा आहार कैसा हो,यह सब आयुर्वेद में बताया गया है। महर्षि चरक ने कहा है कि भोजनम् इव भेषजम् अर्थात आहार ही औषध है।

मेरे ध्यान में आया है कि अधिवेशन के दौरान संचालित वैज्ञानिक सत्र मेंआयुर्वेद आहार- स्वस्थ भारत का आधारविषय पर भी विचार विमर्श किया जाएगा। मुझे विश्वास है कि इस विचार-विमर्श के परिणाम,लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा में उपयोगी सिद्ध होंगे।

देवियो और सज्जनो,

आज उज्जैन में शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद महाविद्यालय के नए भवन के वर्चुअल लोकार्पण का अवसर भी मुझे प्राप्त हुआ है। लगभग 20 करोड़ रुपए के इस आधुनिक भवन के निर्माण से आयुर्वेदिक शिक्षण,प्रशिक्षण और उपचार की सुविधाओं को निश्चित ही बढ़ावा मिलेगा। महासम्मेलन के अधिवेशन और आयुर्वेद महाविद्यालय के नए भवन के लोकार्पण पर आज यहां आयुर्वेद के हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्‍व हो रहा है। यहां प्रशासनिक क्षेत्र से, आयुर्वेदिक शिक्षा से और अनुसंधान से जुड़े जिम्मेदार महानुभाव उपस्थित हैं। इस महत्वपूर्ण आयोजन से लोगों को कुछ अपेक्षाएं होना स्वाभाविक है।

आयुर्वेद प्रशासन से जुड़े लोगों से यह अपेक्षा है कि आयुर्वेद के संरक्षण और विस्तार के समक्ष उपस्थितनीतिगत बाधाओं को दूर किया जाए और जन-सामान्य में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए।

आयुर्वेद के शिक्षकों से अपेक्षा है कि गुणवत्‍तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से ऐसे योग्य चिकित्सक तैयार किए जाएं जो लोगों को, व्यापक तौर पर, किफायती उपचार उपलब्ध कराने में अधिक से अधिक योगदान कर सकें।

अनुसंधान से जुड़े लोगों से अपेक्षा है कि रोगों के उपचार एवं महामारी विज्ञान के नए-नए क्षेत्रों में Research, documentation और validation के माध्यम से आयुर्वेद की पहुंच,प्रभावशीलता और लोकप्रियता को बढ़ाया जाए।

देवियो और सज्जनो,

हमारेजीवन का परम ध्येय है – सुखी जीवन जीना और दीर्घायु प्राप्त करना। आयुर्वेद,इस ध्येय को प्राप्त करने का एक सरल मार्ग है। मेरी शुभकामना है कि इस मार्ग का अनुसरण करते हुए सभी देशवासी स्वस्थ रहें,सुखी रहें और लंबी आयु प्राप्त करें।

धन्‍यवाद ,

जय हिन्‍द।