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बोस संस्थान के शताब्दी समारोह के समापन कार्यक्रम में भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

कोलकाता : 29.11.2017

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1. यहां बोस संस्थान, कोलकाता के शताब्दी समारोह के समापन सत्र में उपस्थित होकर मुझे खुशी हुई है। बोस संस्थान को भारतीय विज्ञान के परिदृश्य में एक विशिष्ट और ऊंचा दर्जा प्राप्त है। यह, देश में स्थापित किए जाने वाले शुरुआती वैज्ञानिक संस्थानों मे से एक था। इसे, भारतीय विज्ञान के एक सच्चे पुरोधा आचार्य जगदीश चन्द्र बोस द्वारा स्थापित किया गया था।

2. जगदीश चन्द्र बोस विश्व स्तर के नवान्वेषक और वैज्ञानिक थे। उन्होंने आधुनिक बेतार संचार जैसी क्रांतिकारी प्रौद्योगिकी की नींव रखी। उन्होंने 1895 में ही सूक्ष्म तरंगों के बेतार संचार का प्रदर्शन किया था। इतावली इंजीनियर मारकोनी के रेडियो तरंगों के प्रसारण से काफी पहले ही उन्होंने यह काम कर दिखाया था। इस प्रक्रिया में जगदीश चन्द्र बोस ने विश्व की प्रथम सेमी-कंडक्टर युक्ति, सूक्ष्म तरंगों के लिए गलेना डिटेक्टर का डिजाइन और निर्माण किया।

3. स्वयं द्वारा निर्मित उपकरणों का प्रयोग करते हुए, पौधों की जीवधारियों के समान प्रतिक्रिया का अध्ययन करने वाले संभवत: पहले वैज्ञानिक थे। अब जिसे जैव भौतिकी कहा जाता है, उस क्षेत्र में अंतर्विषयक अनुसंधान का उद्भव उनके इस अनुसंधान से हुआ। उनके कार्य का प्रभाव आज भी हमारी दुनिया पर है। वास्तव में, मुझे विदित है कि आचार्य जगदीश चन्द्र बोस विज्ञान आधारित कथा लिखने वाले भारत के पहले व्यक्ति थे। वे वास्तव में ही बहुमुखी प्रतिभावान थे।

4. जगदीश चन्द्र बोस को अपने जीवनकाल में पूरा श्रेय नहीं दिया गया। उनका वैज्ञानिक कार्य-काल संघर्ष से भरा हुआ रहा। उन्हें संस्थागत और वित्तीय सहयोग प्राप्त नहीं हुआ। औपनिवेशिक सरकार ने उनके रास्ते में रुकावटें पैदा कीं। वर्षों तक वे वैज्ञानिक शोध के प्रति एक संस्थान स्थापित करने तथा भारतीय युवा वैज्ञानिकों की सहायता की आवश्यकता महसूस करते रहे। इसी प्रक्रिया में बोस संस्थान के विचार का जन्म हुआ।

5. अनेक महान लोगों ने जगदीश चन्द्र बोस की मदद की। स्वामी विवकानंद और सिस्टर निवेदिता ने उन्हें प्रोत्साहित किया। बाद में, सिस्टर निवेदिता ने स्वामी विवेकानंद की एक और शिष्या साराचैपमैन बुल से काफी वित्तीय सहायता प्राप्त करने में उनकी मदद की थी। रवीन्द्र नाथ टैगोर, गोपाल कृष्ण गोखले बल्कि महात्मा गांधी ने भी उनकी सहायता की। इस संस्थान को हमारे कुछ महानतम मनीषियों का आशीर्वाद मिला। वैज्ञानिक संस्थान से कहीं ज्यादा यह संस्था आधुनिक भारत के भविष्य में एक निवेश के रूप मे देखी जा सकती है।

6. राष्ट्र निर्माण की इसी भावना से सौ वर्षों में बोस संस्थान प्रेरित रहा है। इसने विज्ञान के ध्येय को तो पूरा किया ही है, भारत का हित भी साधा है। इसने जीवविज्ञान और भौतिक विज्ञान संबंधी अनुसंधान में बहुत योगदान किया है। इसी के साथ इस संस्थान ने अपनी ग्रामीण जैव-प्रौद्योगिकी पहल के माध्यम से ग्रामीण बंगाल में अत्यंत सक्रिय सामाजिक संपर्क विस्तार का कार्यक्रम चलाया है। पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में स्कूली बच्चों के लिए शैक्षिक उत्थान कार्यक्रमों का संचालन भी यह संस्थान कर रहा है।

7. वास्तव में, हमारे समाज में जमीनी स्तर पर विज्ञान और नवान्वेषण की संस्कृति के प्रसार का एक ईमानदार प्रयास यह संस्थान कर रहा है। मैं इसकी सराहना करता हूं और बोस संस्थान को अपनी दूसरी शताब्दी में प्रवेश करने पर शुभकामनाएं देता हूं ।

8. मुझे शताब्दी समारोह के भाग के रूप में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की शृंखला के बारे में जानकर विशेष खुशी हुई। प्राचीन काल से लेकर 21वीं शताब्दी तक के हमारे वैज्ञानिक प्रयासों को शामिल करते हुए भारतीय विज्ञान के इतिहास पर एक विस्तारित विज्ञान संग्रहालय का निर्माण भी एक स्वागत योग्य कार्य है। मुझे विश्वास है कि इससे विज्ञान के कौतूहल और आकर्षण की खोज के लिए युवाओं को, खास तौर से स्कूली बच्चों को प्रेरणा मिलेगी।

देवियो और सज्जनो

9. बोस संस्थान की स्थापना एक विशिष्ट प्रकार के वातावरण में हुई थी। 20वी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, कोलकाता देश की वैज्ञानिक राजधानी और प्रौद्योगिकी केन्द्र था। यहां भौतिकी और रसायन विज्ञान, औषध विज्ञान और उष्ण-कटिबंधी रोगों के क्षेत्र में अनुसंधानकिया गया और उनका उद्धरण अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से परे भी दिया गया। यह शहर विज्ञान और इंजीनियरी शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था।

10. देश के अन्य भागों में इंजीनियरी पढ़ने वाले युवा विद्यार्थियों की शिक्षा कोलकाता की यात्रा और इसकी सुप्रसिद्ध इंजीनियरी व विनिर्माण कंपनियों में नौकरी के बिना पूरी नहीं होती थी। 1940 के दशक में, एक स्थानीय कंपनी द्वारा हावड़ा ब्रिज जो अब रवीन्द्र सेतु के नाम से जाना जाता है का निर्माण, सिविल इंजीनियरी का अजूबा था जिसने समूचे देश को रोमांचित कर दिया।

11. विज्ञान यहां केवलप्रयोगशाला तक सीमित नहीं था। देश के लिए कुछ करने के आतुर अग्रणी बंगाली वैज्ञानिक हमारे शुरुआती वैज्ञानिक उद्यमियों में शामिल थे। रसायन आचार्य पी.सी. राय, जो वास्तव में आचार्य जगदीश चन्द्र बोस के मित्र और सहकर्मी थे ने, किसी भारतीय के स्वामित्व वाली प्रथम औषध निर्माण कम्पनी ‘बंगाल कैमिकल्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड’ की स्थापना की थी। इंजीनियर पिता और पुत्र की जोड़ी अर्थात् राजेन्द्र नाथ मुखर्जी और बीरेन मुखर्जी इंजीनियर उद्योग क्षेत्र में गए। उन्होंने बर्नपुर में ‘इंडियन आयरन एंड स्टील कम्पनी’ की स्थापना की।

12. यहां मैं कहना चाहूंगा कि संयुक्त राज्य अमेरिका में सुविख्यात बोस कारपोरेशन के संस्थापक अमर बोस थे, जो बंगाली मूल के एक प्रौद्योगिकीविद् और शिक्षाविद थे। इन्होंने एक ऐसी कम्पनी खड़ी की जो साउंड सिस्टम में मानदण्ड स्थापित करने वाली कंपनी है।

13. स्पष्ट है कि अगर कोई बंगाली वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीविद् उद्यमी बनते हैं तो, वे बेहद कामयाब हो सकते हैं। हमें उसी संश्लेषण का जादू दोबारा जगाना होगा।

देवियो और सज्जनो

14. बंगाल, भारत की आरंभिक औद्योगिक और विनिर्माण अर्थव्यवस्थाओं में से एक था। उसी विरासत और अपने शिक्षा संस्थानों के बल पर इसे हमारे देश की सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति का नेतृत्व करना चाहिए था। चाहे कोई भी कारण रहा हो, सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी की समर्पित सेवाओं में बंगाल की शुरुआत धीमी रही। वह तेजी दूसरे राज्यों की ओर चली गई जैसे कि हमारे देश के दक्षिणी राज्यों की ओर।

15. अब बंगाल के पास एक और मौका है। हमारे यहां डिजिटल प्रौद्योगिकियों की क्रांति का दौर चल रहा है। सूक्ष्म विनिर्माण और जैव सूचना-विज्ञान जैसे अधुनातन विषय-क्षेत्र हमारे काम करने के तरीके में बदलाव ला रहे हैं और रोबोट विज्ञान हमारे रहन-सहन के तरीके को बदल रहा है।

16. इससे बंगाल के लिए, बंगाल के विज्ञान और बंगाल के युवा वैज्ञानिकों के प्रतिभावान समूह के लिए प्रभूत अवसर पैदा हो रहे हैं। जिस प्रकार एक शताब्दी पहले आचार्य जगदीश चन्द्र बोस ने नवान्वेषण और आविष्कार की प्रक्रिया को अपनाया और उसका नेतृत्व किया, उसी प्रकार नवान्वेषण और आविष्कार के इस नए युग को अपनाकर हम उस महान वैज्ञानिक के प्रति महान श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं।

17. इसी आशावादी विचार के साथ, मैं एक बार फिर बोस संस्थान को इसके 100वें स्थापना दिवस पर बधाई देता हूं। मैं इसके और आप सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं।


धन्यवाद

जय हिन्द!