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साधु वासवानी इंटरनेशनल स्कूल के औपचारिक उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्दू का संबोधन

पुणे : 30.05.2018

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1. मुझे प्राधिकरण, पुणे में साधु वासवानी इंटरनेशनल मिशन स्कूल के औपचारिक उद्घाटन के लिए यहां उपस्थित होकर खुशी हुई है। मुझे बताया गया है कि यह स्कूल 2012 से चल रहा है परंतु पूरा भवन और ढांचा हाल ही में पूरा किया गया है। इसलिए आज इस का लोकार्पण हो रहा है।

2. इस स्‍कूल की एक महान विरासत है। साधु वासवानी इंटरनेशनल स्‍कूल का नामकरण महान आध्‍यात्मिक विभूति साधु वासवानी के नाम पर किया गया है जो हमारे अत्‍यंत उल्‍लेखनीय राष्‍ट्र निर्माताओं में शामिल थे। उन्‍होंने हमें हमारी प्राचीन सभ्‍यता के जीवन मूल्‍यों को आधुनिक युग की तकनीकों के साथ जोड़ना सिखाया।

3. साधु वासवानी के मिशन को उनके शिष्य आदरणीय दादा जे. पी. वासवानी नेआगे बढ़ाया है।जब मैं बिहार का राज्‍यपाल था, मुझे 2016 में, मुंबई के समारोह में पहली बार उनसे मिलने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ। मुझे उसी समय ज्ञात हो गया कि वह एक अत्यंत प्रभावशाली हस्‍ती और एक गहरे विचारक हैं। वर्ष 2018 एक विशेष वर्ष है। कुछ ही महीनों में, दादा जे.पी. वासवानी अपना सौवां जन्मदिन मनाएंगे। उन्होंने 21 वर्ष की छोटी आयु में सांसारिक आसक्ति त्याग दी थी, और तभी से दादा जे.पी. वासवानी ने इन 100 वर्षों में से 79 वर्ष में प्रत्येक क्षण मानवता की सेवा में समर्पित किया है।वे संयुक्त राष्ट्र सहित देश और विदेश के अनगिनत मंचों पर भारतीय परंपरा और संस्कृति के दूत रहे हैं।

4. मुझे ज्ञात है कि अपने युवाकाल में दादा जे. पी. वासवानी एक प्रतिभावान विद्यार्थी थे। उन्‍होंने भौतिकी में विश्वविद्यालय में सर्वोच्‍च स्‍थान हासिल किया और ‘स्केटरिंग ऑफ एक्स-रे बाइ सॉलिड्स’ पर उनके शोध पत्र का मूल्‍यांकन किसी और ने नहीं बल्कि नोबेल पुरस्कार विजेता प्रथम भारतीय वैज्ञानिक सर सी. वी. रमन ने किया था। तथापि दादा जे. पी. वासवानी ने स्वयं को आध्यात्मिक शिक्षण, कल्याण कार्य, पिछड़े हुए लोगों और असहाय पशुओं की देखभाल के प्रति समर्पित करते हुए बिना सोचे-समझे अपने होनहार शैक्षिक कॅरियर को त्‍याग दिया। उन्होंने जो एक तरीका चुना, वह शिक्षा का दीप प्रज्वलित करने का है। देश के भिन्‍न–भिन्‍न स्थानों पर साधु वासवानी स्कूलों की स्थापना उनकी यात्रा का एक हिस्सा है।

5. यह एक सराहनीय उपलब्धि है। और यही वह समृद्ध और उद्देश्यपूर्ण विरासत है जो इस स्कूल की नींव को मजबूत बनाती है।

देवियो और सज्जनो और प्यारेबच्‍चो,

6. आपके स्कूल को दोहरा सौभाग्‍य प्राप्त है। यह न केवल साधु वासवानी और दादा जे.पी. वासवानी से बल्कि पुणे के प्रेरणादायी इतिहास से भी प्रेरित है। पुणे शहर महाराष्‍ट्र और देश के लिए शिक्षा का एक केन्‍द्र रहा है। आधुनिक भारत की गाथा इस शहर से नि:सृत शैक्षिक, सुधारवादी और प्रगतिशील विचार की ऋणी है और हमारा राष्‍ट्र वास्‍तव में इसकी सराहना करता है।

7. पुणे में ही 1848 में महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने उस विद्यालय की स्‍थापना की जिसे केवल बालिकाओं के लिए भारत में प्रथम आधुनिक विद्यालय माना जाता है। पुणे के अन्‍य सुधारकों की भांति, ज्‍योतिबा और साबित्रीबाई फुले ने जातिगत और लैंगिक भेदभाव का मुकाबला करने के और कमजोर वर्गों के लिए कार्य करने के अपने दृढ़ प्रयासों में, शिक्षा को अपना मुख्‍य साधन बनाया।

8. इस कार्य में वे अकेले नहीं थे। पुणे में ही जस्टिस एम.जी. रानाडे और अन्य लोगों ने 19वीं शताब्दी में महाराष्ट्र गर्ल्स एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की थी। महान स्वतंत्रता सेनानी वासुदेव बलवंत फड़के उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने 1860 में महाराष्ट्र एजुकेशन सोसाइटी की नींव रखी थी। बाल गंगाधर तिलक और उनके सहयोगियों ने डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी स्थापित की और बाद में, भारत सेवक समाज के निर्माण में गोपाल कृष्ण गोखले की प्रमुख भूमिका रही।

9. इनमें से अधिकांश पहलें और शिक्षा संस्थान अभी भी कार्य कर रहे हैं और अभी भी बढ़ते जा रहे हैं। महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों में वे ऐसे स्कूलों और कॉलेजों का संचालन कर रहे हैं जो हमारे बच्चों और युवा पीढ़ी को राष्ट्र और समाज की सेवा के लिए तैयार करते हैं।

10. हमारे संविधान के मुख्य निर्माता डॉक्टर बी.आर. अंबेडकर का पुणे के साथ एक लंबा रिश्ता रहा है। उन्होंने भी सामाजिक परिवर्तन और न्यायपूर्ण एवं समतामूलक समाज के निर्माण के माध्‍यम के रूप में शिक्षा के महत्व पर बल दिया। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि महाराष्ट्र सरकार ने 7 नवंबर को ‘विद्यार्थी दिवस’ के रूप में मनाना शुरू कर दिया है। वर्ष 1900 में, इसी दिन बाबा साहब सतारा के एक स्कूल में भर्ती हुए थे और जीवनभर शैक्षिक उत्कृष्टता प्राप्‍त करने की अपनी लगन की शुरुआत उन्‍होंने इसी दिन से की थी।

11. मूल्य आधारित शिक्षा से समाज में नैतिकता को प्रोत्‍साहन मिलता है और मैं श्री लालकृष्ण आडवाणी जिनकी उपस्थिति से आज हम सम्मानित हुए हैं, से बेहतर कोई उदाहरण हमारे सार्वजनिक जीवन में मूल्यों के अनुपालनकर्ता के रूप में ध्‍यान में नहीं आता।

देवियो और सज्जनो और प्यारे बच्चो

12. मैंने जिन नामों और उदाहरणों का पहले उल्लेख किया है, वे हमारे देश के उपलब्धिकर्ताओं के समूह और हमारी राष्ट्र निर्माण परियोजना की मूलभावना को प्रस्तुत करते हैं। ये ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने औपनिवेशिक शासन से हमें आजादी दिलाने और जाति, लिंग और अन्य किसी भी भेदभाव से मुक्त भारत के लिए, ऐतिहासिक गलतियों और सम-सामयिक असमानताओं दोनों का निराकरण करने और उनका समाधान करने में सक्षम भारत बनाने के लिए संघर्ष किया। इनमें से प्रत्येक ने शिक्षा पर तथा ज्ञान, प्रज्ञा और शिक्षण से पुष्‍ट विमर्श पर जोर दिया था। उनमें से प्रत्‍येक ने विवाद की अपेक्षा संवाद की तथा दूसरे व्‍यक्ति की गरिमा का ध्‍यान रखते हुए मतभेदों को दूर करने की संस्‍कृति पर बल दिया था।

13. यही एक शिक्षित समाज की सच्ची विशेषता है। और यही हमारे लिए पुणे की बौद्धिक ऊर्जा और शिक्षा केन्‍द्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा की कसौटी है। इन सबसे बढ़कर,साधु वासवानी इंटरनेशनल स्कूल इस शहर में अपनी मौजूदगी इसी संदर्भ में दर्ज करवा रहा है।

14. शिक्षा का एक और पहलू युवा मन को निखारने का है। जन्म के बाद किसी बच्चे का पोषण उसके आसपास के लोग करते हैं। आरंभिक शिक्षा परिवार के सदस्यों द्वारा प्रदान की जाती है जो प्यार और स्नेह देते हैं और उसकी प्रवृत्तियों को स्‍वरूप प्रदान करते हैं। तपश्‍चात्, बच्चे की स्कूल में लगभग 15 साल शिक्षण की सबसे लंबी यात्रा शुरू होती है। अध्यापक केवल व्यक्तिगत विषयों की जानकारी ही नहीं देते हैं, वे बच्चे की अपनी विशिष्‍ट अस्मिता गढ़ते हैं। किसी बच्चे की आदतें, मूल्य, विचार, खूबियां, समुत्‍थान शक्ति, संकल्प, स्वप्न और कार्य ये सब स्कूल के माहौल से प्रभावित होते हैं।

15. स्‍कूल में बच्‍चे को इतिहास और भूगोल,भाषा और साहित्‍य,गणित और विज्ञान पढ़ाया जाता है।10वीं और12वीं कक्षा में बच्‍चे इन विषयों में और दूसरे विषयों में परीक्षा देते हैं। उन्‍हें अंक और श्रेणियां दी जाती हैं। ऐसे विषयों के महत्‍व को कम करके न आंकते हुए, मैं उन शिक्षाओं की ओर ध्‍यान दिलाना चाहूंगा जिन्‍हें कोई बच्‍चा स्‍कूल में अपनाता है और जो औप‍चारिक रूप से बोर्ड की परीक्षा में जांची नहीं जाती हैं। ये शिक्षाएं संस्‍कृति, चरित्र निर्माण, सहृदयता और साहस तथा पहले से कहीं अधिक तेजी से विकसित हो रहे समाज और विश्‍व में आ रहे बदलावों का मुकाबला करने की होती हैं।

16. जो बच्‍चा इन शिक्षाओं को ग्रहण करता है और इन मूल्‍यों को आत्‍मसात् करता है, वह हमेशा बाहरी दुनिया और गरीब लोगों के प्रति संवेदनशील रहता है। ऐसा बच्‍चा अपनी क्षमता के अनुसार समाज में येन-केन प्रकारेण योगदान करना कभी नहीं भूलेगा।ऐसे बच्‍चों का पोषण केवल ऐसे स्कूल में किया जा सकता है जिसकी खिड़कियां खुली हों और दरवाजे बंद ना हों। मुझे विश्वास है कि दादा जे.पी. वासवानी की उपस्थिति के प्रभाव से साधु वासवानी इंटरनेशनल स्कूल ऐसा ही स्कूल बनेगा। मुझे भरोसा है कि यह आने वाले कल के आदर्श नागरिकों के निर्माण में यहां पुणे के समाज की ही नहीं बल्कि हमारे देश की सेवा भी करेगा।

17. इन्हीं शब्दों के साथ में स्कूल को शुभकामनाएं देता हूं, मैं यहां पढ़ रहे बच्चों को शुभकामनाएं देता हूं और अध्यापकों और स्कूल से जुड़े हुए अन्य लोगों को भी शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

जय हिंद।