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मिशन प्रमुखों से भेंट के अवसर पर, भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्‍द का संबोधन

राष्ट्रपति भवन : 30.06.2018

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1. मैं राष्ट्रपति भवन में आपका हार्दिक स्वागत करता हूं। मुझे आपसे मिलकर और अपने विचारों को आपके साथ साझा करने पर खुशी हुई है।

2. आप यहां पर मिशन प्रमुख सम्मेलन के लिए आए हैं। यह मंच आपको अपने सहयोगियों के साथ विचारों का आदान-प्रदान करने, भारत की नवीनतम घटनाओं के साथ जुड़ने और इन सबसे बढ़कर, अपने देश की उम्मीदों को पूरा करने के लिए एक दल के रूप में अपने प्रयासों में सामंजस्‍य लाने का अवसर प्रदान करता है। मुझे विशेष रुप से इस वर्ष के सम्मेलन के कार्यक्रम से प्रसन्नता हुई है। इसमें विश्व में आ रहे तीव्र परिवर्तनों और हमारी वर्तमान और भावी कूटनीति के प्रमुख क्षेत्रोंके प्रमुख आवश्‍यक बिंदुओं को समाहित किया गया है।

3. केवल भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में व्यापक स्‍तर पर परिवर्तन हो रहे हैं। प्रौद्योगिकी, संचार और सामाजिक आचार-विचार तेजी से बदल रहे हैं। आतंकवाद और अपारंपरिक खतरे निरंतर हमारी सुरक्षा के प्रति चुनौती पेश कर रहे हैं। ऐसे माहौल में भारत की प्रगति को कायम रखना आसान कार्य नहीं है। मिशन प्रमुखों के रूप में, आपको कार्यनीतिक चिंतन, त्वरित कारवाई में कुशल और बदलाव के प्रति स्‍वयं को ढालने में सक्षम बनना होगा। आज एक राष्ट्र के रूप में, हम बड़ा सोच रहे हैं और बड़ा कार्य कर रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री और उनके गतिशील नेतृत्व में देश में एक परिवर्तनकारी बदलाव की शुरुआत हुई है। बाहरी विश्व में भारत को एक उदीयमान देश और एक अग्रसर होते राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। हमारी अर्थव्‍यवस्‍था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्था है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि चाहे वह उज्ज्वला कार्यक्रम हो, मुद्रा योजना हो या जनधन योजना हो, गरीब और वंचित जन-साधारण तक विकास और प्रगति के फायदे सबसे पहले पहुंच रहे हैं। मंगल ग्रह के हमारे मिशन की सफलता और अनन्‍य महिला नौसेना दल द्वारा जलमार्ग से विश्व की परिक्रमा, देश के एक नए और दृढ़ विश्वास को प्रतिबिंबित करते हैं। यह आत्मविश्वास और आशावाद विदेश में किए जाने वाले हमारे कार्यों में झलकने चाहिए।

4. वर्तमान में सरकार का कूटनीति के प्रति एक स्पष्ट और सुचिंतित दृष्टिकोण है। बाहरी दुनिया के साथ हमारे संबंधों की अग्नि परीक्षा यह होगी कि हम घरेलू विकास और प्रगति को आगे बढ़ाने में कितने सक्षम हो पाते हैं। हमारे राजनयिक इस मामले में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। और ऐसा करते हुए उनसे और अधिक करने की अपेक्षा की जाती है, खासतौर से जब देश की अभिलाषा रूपांतरकारी बदलाव की हो। भारतीय विकास गाथा और हमारे अग्रणी कार्यक्रम, चाहे ‘मेक-इन-इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’हो या ‘स्किल इंडिया’, ‘स्मार्ट सिटीज’या ‘स्‍टार्ट-अप इंडिया’हो-इन सबका बाहरी दुनिया के साथ संबंध बहु-आयामी रहा है। राजनयिकों के रूप में यह आपके दायित्‍व का हिस्‍सा है कि आप नए निवेश जुटाएं, उपयुक्त प्रौद्योगिकियों की तलाश करें, मेक-इन-इंडिया उत्पादों के लिए बाजार सृजित करें और सर्वोत्‍तम कारोबारी परिपाटियों को भारत में ले आएं। चाहे रोजगार पैदा करना हो या कृषि आय बढ़ानी हो, धरातल पर चीजों को अमल में लाने में आपकी एक प्रत्यक्ष भूमिका है।

5. भारत का उत्थान और बदलाव इस बात पर निर्भर करता है कि हमें विश्व में किस नजर से देखा जाता है। हमारी भौतिक प्रगति हमारे विचारों और धारणाओं की सकारात्मक मान्‍यता तथा वैश्विक समुदाय तक पहुंचने वाले हमारे जीवन मूल्यों के साथ ताल-मेल वाली होनी चाहिए। बहुत से मुद्दों के समाधान के लिए विश्‍व आज भारत की ओर निहार रहा है। हम शीघ्र ही महात्मा गांधी की 150वीं जयंती संबंधी समारोह आरंभ करेंगे। पूरी दुनिया में आयोजित होने वाले इन हमारे समारोहों में बापू द्वारा हमें सौंपे गए उन के कालजयी मूल्यों को रेखांकित करना होगा। सातत्‍य और जलवायु परिवर्तन के संबंध में हमने अंतरराष्‍ट्रीय सौर गठबंधन और पेरिस समझौते के प्रति अपनी निरंतर वचनबद्धता के माध्यम से अग्रता हासिल की है। हमने भली-भांति यह दिखा दिया है कि योग, आयुर्वेद और पारंपरिक ज्ञान किस प्रकार से समूची दुनिया के लोगों के स्वास्थ्य और आरोग्यता में योगदान दे सकते हैं। इतना ही नहीं, हम वैश्विक समुदाय की समृद्धि में मदद करने, उन्हें एक स्वस्थ जीवन जीने में सहायता पहुंचाने और संकट में उनकी मदद करने के लिए अपने संसाधनों और क्षमताओं को साझा कर रहे हैं। पिछले 4 वर्षों में हमने विदेश में मुसीबत में फंसे 90000 से अधिक भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकाला है। उनके साथ-साथ हमने 50 से ज्यादा दूसरे देशों के नागरिकों को भी बचाया है। हमारे ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के हमारे युगों पुराने दर्शन में हमारे विश्वास को इससे बेहतर ढंग से नहीं दिखाया जा सकता।

6. जुलाई, 2017 में भारत के राष्ट्रपति के रूप में पद ग्रहण करने के बाद से मैंने 10 देशों की राजकीय यात्राएं की हैं। इनमें से सात अफ्रीका की हैं। मैं आपके साथ अपने कुछ अनुभवों को साझा करना चाहता हूं। भारत की प्रतिष्‍ठा बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में, हमारे पास अपने विदेशी मेजबान समाज के सभी वर्गों को अपने साथ जोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। अब तक, विदेश के मेरे सरकारी कार्यक्रम इस विशेष समझ को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं। मैंने जिन देशों की यात्राएं की हैं, उनमें मुझे उनके बारे में गहरी जानकारी और भारत के प्रति उनकी उम्‍मीदों के बारे में पता चला है। इसलिए चाहे कारोबार को बढ़ाना हो, वैज्ञानिक समुदाय के साथ संपर्क साधना हो या साधारण तौर पर वहां की जनता तक पहुंच बनानी हो, सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए आपके काम में बहु-हितधारक दृष्टिकोण परम आवश्यक है।

7. विकासशील देशों और विशेषकर अफ्रीका में,हमने बड़ी संख्या में अवसंरचना, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि से संबंधित योजनाएं आरंभ की हैं। मैंने प्रत्यक्ष रुप में हमारे प्रति उनकी सद्भावना महसूस है। मैं जोर देकर कहना चाहूंगा कि हमारी चालू विकास परियोजनाओं, जिनमें सर्वोच्च गुणवत्ता सुनिश्चित की गई हो, के समय पर कार्यान्वयन से विशेषकर जन-सामान्‍य के स्तर पर हमारी साझेदारी और अधिक प्रगाढ़ होगी। ऐसा करके हम अपनी भावी परियोजनाओं के लिए और अधिक गुंजाइश और उपादेयता भी पैदा कर सकेंगे। लोगों के साथ संपर्क की चर्चा करते हुए, मैं कहना चाहूंगा कि विदेश में भारतीय कला, संगीत और सिनेमा के बहुत अधिक प्रशंसक हैं। भारतीय संस्कृति, खान-पान और सौम्य शक्ति के प्रति वहां गहरी दिलचस्पी है। मुझे खुशी है कि आप इस सम्मेलन में इस विषय पर ध्यान देते हुए विचार करेंगे कि उन तक पहुंच कैसे बनाई जाए।

8. भारत के अलग-अलग राज्यों के साथ मिलकर काम करना हमारी वर्तमान कूटनीति का प्रमुख हिस्‍सा है। हमारे राज्यों और प्रवासी भारतीयों वाले देशों के बीच लोगों के आपसी संपर्क प्रोत्‍साहित करने में ‘जुड़वा व्यवस्थाओं’ का महत्व मुझे स्‍पष्‍ट दिखाई देता है। आज विदेश में रह रहे हमारे नागरिक एक देश के रूप में हम से पहले से अधिक उम्‍मीदें रखते हैं। इस संबंध में, मैं भारत की विदेश मंत्री के उत्कृष्ट नेतृत्व और कार्य की सराहना करता हूं। उन्‍होंने जरूरत पड़ने पर विदेश में रह रहे लोगों तक पहुंचने की हमारी सरकार की क्षमता के प्रति उनमें एक नया भरोसा पैदा किया है। हमारे मिशनों और हमारे राजदूतों को आज जनता की जरूरतों के प्रति संवेदी, हमारे नागरिकों और प्रवासी भारतीय समुदाय के सदस्यों या फिर किसी अन्‍य व्‍यक्ति की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर,राजनयिकों के रूप में देखा जाता है। इसी प्रकार, हमारी ई-वीजा योजना की चहुं-ओर सराहना की जा रही है।

9. मैंने यह भी अनुभव किया है कि विदेश के हमारे मित्र और साझेदार आज हमसे इतनी ही ऊंची उम्मीदें करते हैं।वे चाहते हैं कि हम और बड़ी वैश्विक भूमिका निभाएं। हम यह भूमिका कैसे निभाएं? हमें उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए क्या करना चाहिए? मुझे विश्वास है कि ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनसे इस सम्मेलन के दौरान आप दो-चार होंगे।

10. मैं, इस सम्मेलन में परिचर्चा के लिएऔर विदेश में आपके दायित्‍वों के लिए आपको शुभकामनाएं देता हूं। यह अवश्‍य याद रखें कि आप केवल भारत देश और भारत सरकार का ही प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं बल्कि एक अरब तीस करोड़ भारतीयों, उनकी आशाओं और उनकी आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। आप हमारी विविध और बहुलवादी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं, आप हमारी 5000 वर्ष पुरातन सभ्यता की गंभीरता का प्रतिनिधित्व करते हैं और आप एक ऐसे समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं जो उतार-चढ़ाव से भरी इस दुनिया में मूलत: भलाई और स्थिरता की ताक़त है। इन कारणों से आप में से प्रत्येक के कंधों पर भारी जिम्मेदारी आ गई है। मुझे विश्वास है कि आप पेशेवर राजनयिकों के तौर पर और भारत के निस्वार्थ सेवकों के रूप में इस जिम्मेदारी को निभाते रहेंगे, जैसा कि आपने सदैव किया है।

धन्यवाद

जय हिन्द!