भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय में पूर्व-विद्यार्थी सम्मेलन के अवसर पर भाषण
कानपुर : 30.11.2019
1. अपने पुराने घर-गांव और स्कूल-कॉलेज में पहुंचकर तथा अपने मित्रों, सहपाठियों से मिलकर कितनी खुशी मिलती है, इसकी झलक मुझे, आप सभी के उल्लास से भरे चेहरों में दिखाई दे रही है। मैं भी इस विश्वविद्यालय का विद्यार्थी रहा हूं। इसलिए,‘छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय’ द्वारा आयोजित पूर्व विद्यार्थियों के इस सम्मेलन के अवसर पर, आप सभी के बीच आकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई है।
2. 1966 में कानपुर विश्वविद्यालय की स्थापना से पहले, यहां के कॉलेज आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध थे। मुझे भी बी.कॉम. की डिग्री आगरा विश्वविद्यालय से ही प्राप्त हुई थी। लेकिन एल.एल.बी.की डिग्री कानपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त हुई। इस प्रकार, एक ही नगर में स्थित डी.ए.वी. कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करते हुए, मुझे दो विश्वविद्यालयों से स्नातक होने का अवसर प्राप्त हुआ।
3. वर्ष 1997 में इस विश्वविद्यालय का नामकरण छत्रपति शाहू जी महाराज के नाम पर किया गया। वे, भारत में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत रहे और अपनी समतावादी सोच तथा शासन-प्रशासन में समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जाने जाते हैं। इन वर्गों के लोगों के लिए वे आशा की किरण लेकर आए। विश्वविद्यालय का आदर्श वाक्य "आरोह तमसो ज्योति” भी यही संदेश देता है कि आइए, अज्ञान के अंधकार से शिक्षा की ज्योति की ओर बढ़ें।
देवियो और सज्जनो,
4. इस विश्वविद्यालय के पूर्व विद्यार्थियों ने देश-दुनिया में अपना और विश्वविद्यालय का नाम रोशन किया है। ऐसे महानुभावों की सूची बहुत लम्बी है और सभी का नाम लेना यहां संभव नहीं है। लेकिन, इनमें से कुछ लोगों का उल्लेख करना हो तो भारत के यशस्वी पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारत रत्न से सम्मानित,श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री गोपाल दास नीरज,श्री कन्हैया लाल नंदा,प्रोफसर एस.एस. कटियार, केन्द्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, एडमिरल (सेवानिवृत्त) विष्णु भागवत, और शिक्षाविद रेणु खाटोर जैसे पूर्व विद्यार्थियों के नाम लिए जा सकते हैं।
5. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भी, कानपुर के बी.एन.एस.डी. कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की थी। यह हम सबके लिए गौरव का विषय है। मुझे भी उसी कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। आज भी,जब उधर से होकर गुजरता हूं तो विद्यार्थी जीवन याद आ जाता है। उस समय का शैक्षिक वातावरण याद आ जाता है और अपने शिक्षक भी। मुझे खुशी है कि इसी वर्ष फरवरी में, अपने तीन शिक्षकों से मिलने और उन्हें सम्मानित करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ था।
देवियो और सज्जनो,
6. आज यहां उपस्थित पूर्व-विद्यार्थी विश्वविद्यालय की बहुमूल्य श्रृंखला की मजबूत कड़ियां हैं। इस विरासत को सहेजने और आगे बढ़ाने का कार्य विश्वविद्यालय की कुलाधिपति श्रीमती आनन्दीबेन पटेल, और उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री श्री दिनेश शर्मा के योग्य मार्गदर्शन में चल रहा है। मुझे बताया गया है कि कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता के नेतृत्व में विश्वविद्यालय को 2018 के एक सर्वेक्षण में 17वीं रैंकिंग प्राप्त हुई है। मेरी शुभकामना है कि यह विश्वविद्यालय निरन्तर प्रगति करता रहे और लगभग 07 वर्ष बाद जब इसकी स्थापना के 60 वर्ष पूरे हों, तो विश्वविद्यालय का नाम पहली 10 रैंकिंग में शामिल हो।
7. इसी महीने की 23 और 24 तारीख को नई दिल्ली में राज्यपालों और उप राज्यपालों के सम्मेलन में उच्चतर शिक्षा पर अलग से एक विशेष सत्र रखा गया था। सम्मेलन के दौरान मैंने सभी राज्यपालों का आह्वान किया कि चांसलर के रूप में विश्वविद्यालयों के ‘संरक्षक’का दायित्व निभाते हुए, उन्हें हमारी उच्चतर शिक्षा संस्थाओं को शोध व नवाचार का केन्द्र बनने के लिए प्रेरित करना है। उच्च शिक्षा पर गठित राज्यपालों के उप-समूह की संयोजिका, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनन्दी बेन पटेल ही थीं। भारत सरकार की नई शिक्षा नीति का लक्ष्य भी देश को ‘Knowledge Super Power’ बनाने का है। यह लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है, जब शिक्षा संस्थाओं को जिज्ञासा, प्रयोग और कौशल का केन्द्र बनाया जाए।
देवियो और सज्जनो,
8. अभी पिछले महीने ही, राष्ट्रपति भवन में, आई.आई.टी., दिल्ली का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। संस्थान के पूर्व विद्यार्थियों के सहयोग से बनाए गए 250 करोड़ रुपए के‘एनडाउमेंट फंड’ का लोकार्पण करते हुए मैं विचार कर रहा था कि सभी शैक्षिक संस्थाओं को इस प्रकार के‘फंड’ स्थापित करने चाहिए। इस राशि का उपयोग, निर्धन व मेधावी विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप देने, संस्था का इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारने तथा उन्नत प्रौद्योगिकी व संसाधन जुटाने में किया जा सकता है।
आइए, इस विश्वविद्यालय में भी इस पहल को आगे बढ़ाएं। आज आपके समक्ष, मैं, अपनी ओर से, एक लाख ग्यारह हजार रुपए की राशि, इस फंड में देता हूं और आप सभी से अपेक्षा करता हूं कि आप लोग भी इस कार्य में उदारतापूर्वक सहयोग करें।
9. आर्थिक संसाधनों के अतिरिक्त,पूर्व विद्यार्थी, अपना कुछ समय देकर, वर्तमान विद्यार्थियों का मार्गदर्शन कर सकते हैं,उन्हें ज्ञान-विज्ञान के उभरते हुए क्षेत्रों से अवगत करा सकते हैं और शिक्षण-कार्य में नए तौर-तरीकों व नई टेक्नोलॉजी के प्रयोग में सहायता कर सकते हैं। यह हम सबका कर्तव्य भी है और दायित्व भी।
10. सही मायनों में, शिक्षा का उद्देश्य तभी पूरा होगा, जब विकास सर्वांगीण हो और सभी वर्गों का हो। मुझे विश्वास है कि यहां के पूर्व विद्यार्थी और विश्वविद्यालय परिवार के सभी सदस्य, इस विश्वविद्यालय और कानपुर एवं देश के भविष्य को संवारने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे।