भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द जी का अमृता इंजीनियरी और प्रबंध विज्ञान संस्थान के नए कैम्पस के लोकार्पण और बसवेश्वर वीरशैव विद्यावर्धक संघ के 111वें वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह के उद्घाटन के अवसर पर संबोधन
बिदाड़ी, रामनगर : 30.12.2017
1. मैंने अमृता इंजीनियरी और प्रबंध विज्ञान संस्थान के इस नए कैम्पस में आने का निमंत्रण स्वीकार किया क्योंकि मैं शिक्षा कार्य का पक्का परोपकार हूं और 39 विद्यार्थियों का भविष्य हैं। मैं यहां बसवेश्वर वीरशैव विद्यावर्धक संघ के 111वें वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह का उद्घाटन करने के लिए भी आया हूं।
2. बसवेश्वर वीरशैव विद्यावर्धक संघ का एक दीर्घ और समृद्ध इतिहास है। इसकी शुरुआत 20वीं शताब्दी के आरंभ में हुई जब औपनिवेशिक शासन ने बागलकोट क्षेत्र को गरीबी और तंगहाली में धकेल दिया था। लोगों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं अपर्याप्त थी या उपलब्ध थी ही नहीं। ऐसी दशा में एक अत्यंत नेक व्यक्ति बिलूर के श्री गुरु बसव स्वामीजी ने कुछ कर दिखाने का निर्णय लिया। उन्होंने राष्ट्र निर्माण की सर्वोत्तम परम्पराओं के अनुरुप कार्य किया। 1906 में उन्होंने इस संघ की स्थापना की। उन्होंने 12वीं शताब्दी के एक दूरद्रष्टा, आध्यात्मिक प्रणेता और समाज सुधारक श्री बसवेश्वर, जिनका प्रभाव कर्नाटक में अभी भी देखा जा सकता है, पर इसका नामकरण किया। तभी से बसवेश्वर वीरशैव विद्यावर्धक संघ शिक्षा और ज्ञान के प्रचार-प्रसार के प्रति समर्पित बना हुआ है।
3. मुझे बताया गया है कि आज संघ कर्नाटक और महाराष्ट्र में 150 से अधिक शिक्षा संस्थान चल रहा है। इनमें प्राथमिक और पूर्व प्राथमिक से लेकर इंजीनियरी और चिकित्सा कॉलेज तक शामिल हैं। मुझे जानकारी मिली है कि इन संस्थानों में 50,000 से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ रहे हैं और उनमें से आधी संख्या महिलाओं की हैं। मुझे बताया गया है कि बसवेश्वर वीरशैव विद्यावर्धक संघ द्वारा संचालित चिकित्सा संस्थानों और अस्पतालों में पिछले तीन वर्ष के दौरान, प्रत्येक चार शल्यचिकित्साओं में से एक शल्यचिकित्सा निःशुल्क की गई है। हमारे समाज और देश के लिए महत्वपूर्ण बालिका शिक्षा और गरीबों पर बल देकर संघ ने अपने संस्थापकों के आदर्श का अनुगमन किया है।
4. मुझे अमृता इंजीनियरी और प्रबंध विज्ञान संस्थान के इस सुंदर नए कैम्पस को देखकर भी खुशी हुई है। यहां के विद्यार्थी-अत्याधुनिक अवसंरचना से और स्थानीय उद्योग के साथ यहां से गठजोड़ से लाभान्वित होंगे। ऐसा विद्यार्थी-उद्योग संयोजन शिक्षा और शिक्षण को व्यावहारिक और समाधानपरक बनाने के लिए आवश्यक है। मुझे विशेष रूप से उम्मीद है कि इससे यहां के विद्यार्थियों को केवल नौकरी खोजने वाला नहीं बल्कि नौकरी देने वाला बनने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। यह उद्यमिता का युग है। ऐसे संस्थानों से तैयार विद्यार्थियों और स्नातकों से हमारे देश की और हमारे कर्नाटक की ‘नवान्वेषण और स्टार्ट-अप संस्कृति’ आगे बढ़ेगी।
5. मैं शिक्षा के महत्व के व्यापकतर और प्रबुद्ध बोध का भी आग्रही हूं। शिक्षा, केवल पाठ्यपुस्तकों को पढ़ना और विज्ञान और साहित्य या चिकित्सा, इंजीनियरी और प्रबंधन के विवरण की जानकारी प्राप्त करना ही नहीं है, इसका अभिप्राय न ही किसी पेशे की तैयारी के लिए डिग्री हासिल करने से है। ये सभी महत्वपूर्ण हैं परंतु केवल ये ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं है। शिक्षा और डिग्री की सच्ची कसौटी इस बात में है कि यह समाज में योगदान करने में विद्यार्थी के लिए कितनी मददगार होगी तथा पिछड़े और गरीब लोगों की बेहतरी में कितना कारगर होगी।
6. इसी प्रकार, शिक्षा प्रदान करने का कार्य एक पावन कार्य है। प्राचीन काल से ही, भारतीय परंपरा ने ‘विद्या दान’ की संकल्पना पर बल दिया है। वाणिज्यिक और व्यक्तिगत हितों से अलग इसकी प्ररेणा युवाओं की चिन्तन धारा को दिशा देने तथा उन्हें समाज में और हमारे राष्ट्र के निर्माण में सहायक होने के लिए तैयार करने पर होना चाहिए। यही श्री बसवेश्वर और श्री गुरुबसव स्वामीजी दोनों के सिद्धांतों के अनुरूप होगा।
7. इन्हीं शब्दों के साथ, मैं एक बार पुनः शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य के लिए बसवेश्वर वीरशैव विद्यावर्धक संघ को बधाई देता हूं। संघ और अमृता संस्थान को उनके सभी भावी प्रयासों के लिए मेरी शुभकामनाएं। यहां उपस्थित युवा विद्यार्थियों को मेरी विशेष शुभकामनाएं। राष्ट्र को आपसे बहुत आशाएं हैं। आपके सभी सपने साकार हों।
8. और अंत में, मैं यहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति को सुखमय और समृद्ध नववर्ष की शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द।