भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी का परमहंस योगानन्द की पुस्तक GOD TALKS WITH ARJUNA - THE BHAGAVAD GITA के हिन्दी अनुवाद के विमोचन के अवसर पर सम्बोधन
रांची: 15.11.2017
1. योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया'के द्वारा पूरे विश्व में निरंतर योगदान के सौ वर्ष पूरे होने पर मैं इस सोसाइटी, और परमहंस योगानन्द के विचारों से,जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को बधाई देता हूँ। इन सौ वर्षों में योगदा सत्संग सोसाइटी ने पूरे विश्व में भारत के योग विज्ञान को प्रसारित करने में सराहनीय योगदान दिया है। इस शताब्दी वर्ष में, गीता पर परमहंस जी की टीका के हिन्दी अनुवाद का प्रकाशन समयानुकूल है और उपयोगी भी। सन 1995 में मूल अँग्रेजी टीका का प्रकाशन हुआ था। अब तक स्पैनिश, जर्मन, इटालियन और पुर्तगाली भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध थे। आज इस हिन्दी अनुवाद के प्रकाशन द्वारा एक बहुत बड़े पाठक वर्ग के लिए इस पुस्तक में निहित जीवनोपयोगी ज्ञान सुलभ हो गया है। इस अनुवाद के लिए स्वामी नित्यानन्द जी प्रशंसा के पात्र हैं।
2. मैं मानता हूँ कि अध्यात्म हमारे देश की आत्मा है जो पूरे विश्व के लिए भारत की एक महत्वपूर्ण देन है। विश्वस्तर पर भारत के अध्यात्म को सम्मानित और लोकप्रिय बनाने का मार्ग स्वामी विवेकानंद और परमहंस योगानन्द ने प्रशस्त किया था। एक रोचक ऐतिहासिक संयोग से, वर्ष 1893में स्वामी विवेकानंद के शिकागो सम्बोधन ने भारतीय अध्यात्म के बारे में पश्चिम में जागृति की एक नई लहर पैदा की थी, और इसी वर्ष गोरखपुर में परमहंस योगानन्द का मुकुन्द लाल घोष के नाम से अवतरण हुआ था।
3. यह जानकारी मुझे अभिभूत करती है कि 1918 से 1920 तक रांची के इसी आश्रम को परमहंस योगानन्द ने अपनी कर्म-स्थली बनाया था। उसके बाद अगले बत्तीस वर्षों तक वे 'Self Realisation Fellowship'के माध्यम से अमेरिका में लाखों लोगों को क्रिया योग की शिक्षा से लाभान्वित करते रहे। इस दौरान, सन 1935 में जब वे भारत आए तब भी उन्होने इस आश्रम को अपनी उपस्थिति से पवित्र किया था। महात्मा गांधी भी सन 1925 में इस आश्रम में आए थे। यहाँ आना मेरे लिए बहुत खुशी की बात है।
4. परमहंस योगानन्द का संदेश अध्यात्म का संदेश है। वह धर्म से परे, सभी धर्मों का सम्मान करने का, विश्व-बंधुत्व का नज़रिया है। वे मानते थे कि जिस तरह रोशनी,हवा और पानी सबके लिए हैं, उसी तरह ऋषि-मुनियों द्वारा विकसित किया गया भारत का योग-विज्ञान भी पूरी मानवता के लिए है। गीता में भारत का यही योग शास्त्र श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद के रूप में समझाया गया है।
5. अपनी टीका में परमहंस योगानन्द ने गीता के मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष को स्पष्ट करते हुए मार्गदर्शन प्रदान किया है। हर मनुष्य के अंदर चलने वाले युद्ध को उन्होने गीता का विषय माना है।
6. परमहंस योगानन्द के अनुसार गीता दैनिक जीवन के लिए एक पाठ्य-पुस्तक भी है। वे कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को कुरुक्षेत्र की अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी है और इसे जीतना भी है। "सही क्या है और गलत क्या है? क्या करें और क्या न करें? "यह अंतर्द्वंद्व सबको परेशान करता है। ऐसे दोराहों पर निर्णय लेने में विद्वत्ता की नहीं बल्कि विवेक की आवश्यकता होती है। सही और गलत के बीच चुनाव करने का यह विवेक गीता में मिलता है।
7. गीता पर अपनी टीका को परमहंस योगानन्द 'आत्म-साक्षात्कार का राजयोग विज्ञान' कहते हैं। वे आत्म-साक्षात्कार को गीता का उद्देश्य मानते हैं तथा राजयोग इस उद्देश्य को प्राप्त करने की पद्धति है। यहाँ बैठे अधिकांश लोग योग की विभिन्न पद्धतियों से परिचित हैं। स्वामी विवेकानंद और परमहंस योगानन्द ने राजयोग पर विशेष ज़ोर दिया था। राजयोग की वैज्ञानिकता के कारण पश्चिम के लोगों पर इसका अधिक प्रभाव पड़ा। आज की युवा पीढ़ी के लिए भी राजयोग अधिक उपयुक्त लगता है।
8. मेरा यह मानना है कि जो व्यक्ति गीता को अपने आचरण में ढालेगा वह झंझावात में भी, स्थिर रहेगा, शांत रहेगा और सक्रिय रहेगा। प्रायः लोग सफलता-असफलता तथा जय-पराजय के चश्मे से सब कुछ देखते हैं। इस संदर्भ में गीता का कालजयी संदेश उसके अंतिम श्लोक में देखा जा सकता है
यत्र योगेश्वरो कृष्ण:, यत्र पार्थो धनुर्धर:I
तत्र श्री: विजयो भूति:, ध्रुवा नीति: मति: ममI
इस श्लोक का भाव है कि जहां योगेश्वर कृष्ण और धनुर्धर अर्जुन हैं, वहीं विजय भी सुनिश्चित है। इसका अर्थ यह है कि योग और दक्षता का समन्वय, तथा अध्यात्म तथा कौशल का समन्वय, विजय को सुनिश्चित करता है। गीता का अमर और जीवंत संदेश परमहंस योगानन्द की टीका के माध्यम से बहुत लोगों तक पहुंचता है।
9.Materialism और competition से घिरी, आज की युवा पीढ़ी पर भी परमहंस योगानन्द का गहरा प्रभाव है। कड़े संघर्ष के बीच विश्वस्तरीय सफलता और समृद्धि हासिल करने वाले नवयुवक उनकी पुस्तक 'Autobiography of a Yogi’को अपनी सफलता का श्रेय देते हैं। यह पुस्तक उन्हे जीवन में आगे बढ़ने का सही रास्ता दिखाती है। सत्तर साल पहले प्रकाशित और लगभग 45भाषाओं में अनुवादित यह पुस्तक, जिसे दुनिया के लगभग 90% लोग अपनी भाषा में पढ़ सकते हैं, आज भी उतनी ही लोकप्रिय है।
10. मैं योगदा सत्संग के आश्रमों और ध्यान-केन्द्रों द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, प्राकृतिक आपदाओं से आहत लोगों की सहायता, अनाथ बच्चों के लालन-पालन और कुष्ठ रोगियों की सेवा आदि क्षेत्रों में योगदान की सराहना करता हूँ।
11. मैं आशा करता हूँ कि हिन्दी में उपलब्ध परमहंस योगानन्द की गीता की टीका से लाखों करोड़ों लोग अपने जीवन को बेहतर बनाने का रास्ता जान पाएंगे, अपने आप को समझ पाएंगे।
12. मुझे पूरा विश्वास है कि योगदा सत्संग सोसाइटी अध्यात्म का प्रसार और मानवता की सेवा करते हुए परमहंस योगानन्द के विश्व कल्याण के अभियान को इसी प्रकार आगे बढ़ाती रहेगी।
धन्यवाद
जय हिन्द!