भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी का विपस्सना ध्यान केंद्र के उद्घाटन के अवसर पर सम्बोधन
ड्रैगन पैलेस टेम्पल, नागपुर : 22.09.2017
आध्यात्म की पावन धरती महाराष्ट्र में आने का अवसर मिलना अपने आप में बड़े सौभाग्य की बात है। महाराष्ट्र से जुड़ी अनेकों विशेषताएं और उपलब्धियां गिनाई जा सकती हैं;लेकिन यह राज्य आस्था और ध्यान के लिए सबसे अधिक जाना जाता है।
आज नागपुर में मुझे बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर द्वारा पवित्र की गई दीक्षा भूमि की पुण्य स्थली को नमन करने का सौभाग्य मिला। और यहां मैं विपस्सना ध्यान केंद्र का उद्घाटन कर रहा हूं। मेरी इस यात्रा के पीछे भगवान बुद्ध का आशीर्वाद है जिनकी शिक्षा2,500 सालों से हमारे देश को प्रेरणा देती रही है। सम्राट अशोक से लेकर महाराष्ट्र के बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर तक भगवान बुद्ध से ही प्रेरित हुए थे। हमारा भारतीय संविधान भी मूलतः बौद्ध दर्शन के आदर्शो पर आधारित है जिसमें मानव-मानव के बीच समानता, भ्रातृत्व, और सामाजिक न्याय का सामंजस्य दिखता है। साथ ही,हमारे संविधान के निर्माता बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने संविधान-सभामेंअपने अंतिम भाषण में बताया था कि हमारे लोकतन्त्र की जड़ें कितनी गहरी और पुरानी हैं। इस संदर्भ में उन्होने भगवान बुद्ध की परंपरा का उदाहरण दिया था। उन्होने कहा था कि भारत में संसदीय प्रणाली की जानकारी मौजूद थी। यह प्रणाली बौद्ध भिक्षु संघों द्वारा व्यवहार में लायी जाती थी। भिक्षु संघों ने इनका प्रयोग उस समय की राजनीतिक सभाओं से सीखा था।बौद्धसंघों में प्रस्ताव, संकल्प, कोरम, सचेतक, मत-गणना, निंदा-प्रस्ताव आदि के नियम थे।हमारे आधुनिक संविधान की रचना करके बाबासाहब ने इसी प्राचीन लोकतान्त्रिक परंपरा की फिर से प्रतिष्ठा की।
बौद्ध दर्शन के मूल में एक क्रांतिकारी चेतना है जिसने पूरी मानवता को अभिभूत कर दिया है। यह भारत से निकलकर श्रीलंका,चीन,जापान,और इस तरह एशिया से होते हुए पूरी दुनिया में अपनी जड़ें जमा चुका है।
बौद्ध दर्शन में समाज को सुधारने का जो आदर्श है वह बाद की सदियों में अनेक समाज सुधार आंदोलनों को दिशा दिखाता रहा है। ऐसे कई आंदोलन महाराष्ट्र में ही हुए हैं। महाराष्ट्र में हुए समाज सुधार के आंदोलनों ने19वीं और 20वीं सदी के दौरान भारत के अन्य क्षेत्रों के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया।
भारत में प्राचीन काल से ही अपनाई गई विपस्सना जैसी ध्यान की पद्धतियां केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में काफी लोकप्रिय होती जा रही हैं।
भगवान बुद्ध द्वारा प्रदिपादित ध्यान पद्धति ही विपस्सना है। विपस्सना का सीधा सा अर्थ है ठीक से देखना। अपनी साँस पर, अपने विचारों पर, अपने शरीर के हर हिस्से पर और अपनी भीतरी प्रवृत्तियों पर इतनी सजग निगाह रखना कि कुछ भी अनदेखा न रहे। ऐसा करने से हम अपने असली स्वरुप से जुड़ते हैं।
विपस्सना हमारे मन और शरीर को शुद्ध करने तथा आधुनिक जीवन के तनावों का सामना करने का प्रभावी तरीका है। यदि ठीक से अभ्यास किया जाए तो विपस्सना से वही लाभ मिल सकता है जो रोग निरोधी दवाओं से मिलता है। इस तरह, यह ध्यान की पद्धति होने के साथ साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।
मुझे भी छब्बीस वर्ष पहले एक निर्धारित कोर्स के माध्यम से इस पद्धति से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इसलिए इस भवन का उद्घाटन करते हुए मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है।
योग की तरह विपस्सना को भी किसी धर्म विशेष से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। यह पूरी मानवता के कल्याण के लिए है। मुझे बहुत ख़ुशी है कि महाराष्ट्र में विपस्सना के प्रसार के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये गए हैं।
लगभग चालीस वर्षों से स्वर्गीय सत्य नारायण गोयनका जी द्वारा स्थापित धम्मगिरि नाम का विपस्सना केंद्र इगतपुरी में इस पद्धति से लोगों को जोड़ रहा है और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका है। हम सब लोग जानते हैं कि मुंबई में बने विश्व प्रसिद्ध ग्लोबल विपस्सना पैगोडा में भी यह कार्य बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित कर रहा है। इसी प्रकार, विपस्सना सहित बौद्ध दर्शन के महान आदर्शों से लोगों को जोड़ने के पवित्र उद्देश्य के साथ सुलेखाताई कुंभारे जी के नेतृत्व में उनकी टीम यहाँ काम कर रही है। उन्होंने मानव कल्याण के लिए रचनात्मक और सकारात्मक भूमिका निभाते हुए इस ध्यान केंद्र का निर्माण कराया है। मैं उनके इस प्रयास की प्रशंसा करता हूँ।
मैं मानता हूँ कि असुरक्षा और उथल-पुथल से भरे आज के माहौल में शांतिदूत गौतम बुद्ध का अहिंसा, प्रेम और करुणा का सन्देश बहुत अधिक प्रासंगिक है। इंसानियत को जोड़ने वाली अपनी कोशिश को आप सब पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ाते रहेंगे, यह मेरा विश्वास है। इस केंद्र को अपने सभी उद्देश्यों में सफलता मिले यह मेरी शुभकामना है। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि विपस्सना के संदेश को और भगवान बुद्ध की शिक्षा को आप सब दुनिया के कोने-कोने तक फैलाएँ।
धन्यवाद
जय हिंद