भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का ‘महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय’ के शिलान्यास के अवसर पर सम्बोधन
गोरखपुर: 28.08.2021
योग के माध्यम से सामाजिक जागरण की अलख जगाने वाले और भारतवर्ष में गुरुओं की महिमा को पुन: स्थापित करने वाले गुरु गोरखनाथ जी ने कहा था कि -
यद् सुखम् तद् स्वर्गम्, यद् दुःखम् तद् नरकम्
अर्थात्
जो सुख है वही स्वर्ग है- और जो दुख है, वही नरक है।
भारतवर्ष में, वैदिक काल से ही‘ आरोग्य’ पर विशेष बल दिया जाता रहा है। वेदों,उपनिषदों , पुराणों और अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी आरोग्य की महत्ता का वर्णन है। कहा गया है कि‘ शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्’अर्थात् शरीर ही समस्त कर्तव्यों को पूरा करने का प्रथम साधन है। इसलिए शरीर को स्वस्थ रखना बेहद आवश्यक है। आप सबका तथा समस्त जनों का शरीर निरोगी रहे - स्वस्थ रहे,इस उद्देश्य को फलीभूत करने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को सफल बनाने के लिए ‘महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय’ की स्थापना की जा रही है। इसलिए, आज यहां आप सबके बीच आकर,इस विश्वविद्यालय का शिलान्यास करते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है।
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भारत में अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित रही हैं। भारत सरकार ने आयुर्वेद, योग एवंप्राकृतिक चिकित्सा,यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धतियों,जिन्हें सामूहिक रूप से ‘ आयुष’के नाम से जाना जाता है, के विकास के लिए निरंतर प्रयास किए हैं। इन चिकित्सा पद्धतियों की व्यवस्थित शिक्षा और अनुसंधान के लिए भारत सरकार ने,वर्ष 2014 में ‘आयुष’मंत्रालय का गठन किया था।
उत्तर प्रदेश सरकार ने भी वर्ष 2017 में आयुष विभाग की स्थापना की थी। और अब, राष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं से युक्त आयुष विश्वविद्यालय स्थापित किये जाने का सराहनीय निर्णय लिया है। मुझे विश्वास है कि इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध होकर प्रदेश के आयुष चिकित्सा संस्थान अपने-अपने क्षेत्र में बेहतर कार्य कर सकेंगे।
मुझे बताया गया है कि पारम्परिक एवं प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों की विश्वसनीयता एवं स्वीकार्यता को अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप स्थापित किये जाने और जन-स्वास्थ्य में योग की उपयोगिता को देखते हुए,एक शोध संस्थान की स्थापना भी इस विश्वविद्यालय में की जाएगी।
देवियो और सज्जनो,
भारत में प्राचीन काल से ही अनेक चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित रही हैं।देश में सिद्ध चिकित्सा पद्धति का विकास नाथों एवं सिद्धों द्वारा किया गया।आज के समय में यह पद्धति, दक्षिण भारत में अधिक लोकप्रिय है।ऐसा विश्वास है कि खनिजों और धातुओं को औषधि रूप में तैयार करके, इमरजेंसी मेडिसिन के रूप में इनके प्रयोग के प्रवर्तकों में बाबा गोरखनाथ प्रमुख रहे हैं। इसलिए ,उत्तर प्रदेश में स्थापित किए जा रहे आयुष विश्वविद्यालय का नाम"महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय”रखा जाना सर्वथा उचित है।
गोरखनाथ जी का जीवन उदात्त था। उन्होंने सदाचरण,ईमानदारी, कथनी व करनी के मेल और बाह्य आडंबरों से मुक्ति की शिक्षा दी। योग को उन्होंने‘दया दान का मूल ’कहा। उनके चरित्र, व्यक्तित्व एवं योग सिद्धि से सन्त कबीर इतने प्रभावित थे कि उन्होंने गुरु गोरखनाथ को‘कलिकाल में अमर’ कहकर उनकी प्रशस्ति की। गोस्वामी तुलसीदास ने भी योग के क्षेत्र में गुरु गोरखनाथ की प्रतिष्ठा स्वीकार करते हुए कहा कि –‘गोरख जगायो जोग ’अर्थात् गुरु गोरखनाथ ने जन-साधारण में योग का अभूतपूर्व प्रसार किया।
भारत में योग मार्ग उतना ही प्राचीन है जितनी प्राचीन, भारतीय संस्कृति है। योग को प्रतिष्ठित करने वाले गुरु गोरखनाथ निश्चय ही अत्यन्त महिमामय,अलौकिक प्रतिभा सम्पन्न, युगद्रष्टा महापुरुष हुए हैं जिन्होंने समस्त भारतीय तत्व चिन्तन को आत्मसात करके साधना के एक अत्यन्त निर्मल मार्ग का प्रवर्तन किया। इसीलिए वे कहते थे -
‘योगशास्त्रम् पठेत् नित्यं किम् अन्यैः शास्त्र-विस्तरैः’
अर्थात्
नित्य प्रति योगशास्त्र का अध्ययन करना ही पर्याप्त है,अन्य शास्त्र पढ़ने की आवश्यकता ही क्या है।
देवियो और सज्जनो,
भारतवर्ष, विविधताओं में एकता का उत्तम उदाहरण है। जो कुछ भी लोकोपयोगी है ,कल्याणकारी है, सहज उपलब्ध और सुगम है ,उसे अपनाने में भारतवासी संकोच नहीं करते। देश में विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का प्रचलन भी हमारी इसी सोच का परिणाम है।
योग,आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा,विश्व को भारत की देन है। भगवान धन्वंतरि को जहां आयुर्वेद का जनक माना जाता है,वहीं ऋषि अगस्त्य को सिद्ध चिकित्सा के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति भी अनेक क्षेत्रों में खूब लोकप्रिय है। जिस तरह चरक और सुश्रुत को औषधि-शास्त्र एवं शल्य-चिकित्सा का प्रवर्तक माना जाता है,उसी तरह से यूनानी चिकित्सा पद्धति के प्रणेता हिप्पोक्रेटीस को पश्चिमी दुनिया में चिकित्सा शास्त्र का जनक कहा जाता है।
ऋग्वेद के समय से योग का जुड़ाव भारत के जन-मानस के साथ रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता में मिले पुरावशेषों से भी प्रमाणित हुआ है कि योग हमारी जीवन शैली का अंग रहा है। वर्तमान में ,योग की लोकप्रियता एवं महत्ता सर्वविदित है। योग को जीवन में उतार लेने पर व्यक्ति, आरोग्य के साथ-साथ सकारात्मक ऊर्जा से भर उठता है और मानसिक,शारीरिक तथा भावनात्मक तौर पर मजबूत बनता है। तनाव और चिंता से भरे आधुनिक समय में मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य का मार्ग,योग से उपलब्ध होता है। महर्षि पतंजलि ने अपने महान ग्रंथ ‘योगशास्त्र’ की रचना करके समस्त मानवता को एक आदर्श जीवन पद्धति की अमूल्य शिक्षा दी है।
एक अन्य आयुष चिकित्सा पद्धति - आयुर्वेद को,दुनिया की प्राचीनतम औषधीय चिकित्सा प्रणालियों में से एक माना जाता है। आयुर्वेदिक उपचार में मन,शरीर और आत्मा के बीच संतुलन बनाए रखते हुए समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
आज, इंटीग्रेटिव सिस्टम ऑफ मेडिसिन अर्थात् समेकित चिकित्सा पद्धति का विचार पूरी दुनिया में मान्य हो रहा है। अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियां एक दूसरे की पूरक प्रणाली के रूप में लोगों को आरोग्य प्रदाने करने में सहायक हो रही हैं। राष्ट्रपति भवन में, ऐलोपैथिक चिकित्सा क्लीनिक के साथ-साथ ‘आयुष आरोग्य केंद्र’की सुविधा भी उपलब्ध है। हाल ही में,राष्ट्रपति भवन परिसर में एक ‘आरोग्य वन’विकसित करने का काम शुरू किया गया है।
देवियो और सज्जनो,
भारतीय चिकित्सा पद्धति, विशेष तौर पर प्राकृतिक चिकित्सा की बात हो, तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्मरण स्वाभाविक है। वे प्राकृतिक चिकित्सा के प्रबल पक्षधर थे और कहा करते थे कि शारीरिक उपचार के साधन, हमारी प्रकृति में ही मौजूद हैं। वे इस बात से बहुत व्यथित रहते थे कि आधुनिक शिक्षा का संबंध हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन के साथ नहीं है। विद्यार्थियों को अपने गांव और खेतों के बारे में ज्ञान नहीं होता। गांधीजी कहा करते थे कि हम सब को अपने शरीर के,गांव के, अपने आस-पास के क्षेत्र के बारे में ज्ञान होना चाहिए। विद्यार्थियों को गांव के खेतों में पैदा होने वाली फसलों तथा वनस्पतियों के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
हमारे खेतों में, हमारी रसोई में और हमारे वन-क्षेत्र में औषधीय वनस्पतियों, स्वास्थ्य-रक्षक मसालों और जड़ी-बूटियों का खजाना मौजूद है। इनके बारे में जानकारी होने से सामान्य रोगों का उपचार कम खर्च में हो सकता है और जीवन सुगम हो सकता है।
कोविड-19 के विरुद्ध लड़ाई में, विशेषकर महामारी के प्रकोप की दूसरी लहर में आयुष चिकित्सा पद्धतियों ने लोगों की इम्यूनिटी बढ़ाने तथा उन्हें संक्रमण से मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि,आदिवासी समाज में जड़ी-बूटियों और वन-औषधियों के ज्ञान की समृद्ध परंपरा रही है परन्तु पिछले दो दशकों में,पूरे देश में, आयुष चिकित्सा पद्धतियों की लोकप्रियता में बहुत बढ़ोतरी हुई है। औषधीय जड़ी-बूटियों एवं वनस्पतियों की मांग बढ़ी है। इससे हमारे किसानों और वनवासियों की आय में वृद्धि हो रही है और युवाओं को रोजग़ार भी मिल रहा है। मुझे विश्वास है कि गोरखपुर में महायोगी गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय की स्थापना से‘आयुष’ पद्धतियों की शिक्षा एवं लोकप्रियता को और बढ़ावा मिलेगा।
भाइयो और बहनो,
लोक-जीवन में एक कल्याणकारी कहावत प्रचलित है, ‘पहला सुख निरोगी काया’ । गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि -
बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।।
अर्थात्
बड़े भाग्य से ही हमें यह मानव शरीर प्राप्त होता है।यह शरीर देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, ऐसा सभी ग्रंथों में कहा गया है।
ऐसे दुर्लभ मानव शरीर और मन की रक्षा के लिए आयुष विश्वविद्यालय की स्थापना की दिशा में, प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किए गए प्रयासों की मैं सराहना करता हूं और आप सभी के लिए यही मंगल-कामना करता हूं कि आप सब लोग स्वस्थ और सुखी रहें।
जय हिन्द!