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केन्‍द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक के समापन सत्र में भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्‍द का संबोधन

राष्ट्रपति भवन : 02.05.2018

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1. आज हमने यहां उपस्थित 24 केन्‍द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से उनके परिसरों में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने से संबंधित मुद्दों पर जानकारी हासिल की। यह बैठक मैंने अनुसंधान और नवाचार पर केन्‍दीत आपकी पहलों के संबंध में आपके समक्ष आ रही समस्याओं को जानने, उन पर विचार विमर्श करने और जहां तक संभव हो उनके शीघ्र समाधान ढूंढ़ने के लिए बुलाई गई थी।

2. आज के विचार विमर्श से यह प्रतीत होता है कि विश्वविद्यालय मौलिक विज्ञान से लेकर मानविकी तक भिन्‍न-भिन्‍न क्षेत्रों में अनुसंधान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान कर रहे हैं। तथापि, जैसा कि हमें ज्ञात हुआ है, ऐसे कतिपय क्षेत्र हैं जिनमें आप चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। हमें उन चुनौतियों को स्‍वीकार करना है और उसके बाद विवेकपूर्ण, स्‍पष्‍ट और व्यवस्थित तौर-तरीकों के माध्‍यम से उनका समाधान करना है।

3. बहुत से मामलों में, इन चुनौतियों को विश्वविद्यालयों द्वारा अकेले हल नहीं किया जा सकता और इसके लिए सरकार के संस्थागत तथा दीर्घकालिक सहयोग की जरूरत है। इस संबंध में, मैं मानव संसाधन विकास मंत्री तथा मंत्रालय के राज्य मंत्री तथा अन्य अधिकारियों की उपस्थिति की सराहना करता हूं। मैं आज की बैठक में योगदान के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का भी धन्यवाद करता हूं। चाहे अनुसंधान के वित्तपोषण, सर्वोच्च स्‍तरकी प्रयोगशालाओं या पल्लवन केंद्रों की स्थापना हो या पेटेंट आवेदन में सहायता हो या अन्य मुद्दे हों, मुझे विश्वास है कि मंत्रालयों और संबंधित अधिकारियों ने उन सभी को नोट कर लिया है और ठोस कार्रवाई के जरिए उन पर अनुवर्ती कार्रवाई की जाएगी।

4. यद्यपि आपके बहुत से संभावित सुधार पूरी तरह आपकी पहुंच के दायरे में हैं।इन विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के रूप में, आपकी जिम्‍मेदारी ऐसी व्यवस्था तैयार करने और लागू करने की है जिससे यह सुनिश्चित होगा कि हमारे विश्वविद्यालय निरंतर सुधार करते रहें और राष्ट्र निर्माण के लिए सार्थक शिक्षा प्रदान करते रहें।प्रवेश प्रक्रिया कक्षा संचालन, परीक्षा संचालन, परिणामों की घोषणा और दीक्षांत समारोह में उपाधियां प्रदान करने के अपने शैक्षिक कैलेण्‍डर कासख्‍ती से अनुपालन करने जैसे साधारण प्रयासउत्कृष्टता की ओर बढ़ने का पहला कदम हो सकता है। आज इससे पहले दी गई प्रस्तुतियों से, मुझे ज्ञात हुआ है कि विश्वविद्यालय परिणामों के स्तर तक अधिकांश मामलों में तो आप नियमित बने रहते हैं परंतु दीक्षांत समारोह के आयोजन के स्तर पर आने तक आपकी गति धीमी हो जाती है। मेरे विचार से जब तक आपका दीक्षांत समारोह आयोजित नहीं हो जाता और उपाधियां वितरित नहीं हो जाती, तब तक आपका पूरे वर्ष का शैक्षिक कार्यक्रम अधूरा ही रहता है। यह महत्वपूर्ण है कि आप सभी अपने दीक्षांत समारोह नियमित रूप से और समय पर आयोजित करते हैं।

5. यह देखा गया है कि आप में से अधिकांश विश्‍वविद्यालय संकाय सदस्‍यों की रिक्तियों पर भर्ती की चुनौती का सामना कर रहे हैं।यह मुद्दा हमारे अनेक उच्चतर शिक्षा संस्थानों के सम्‍मुख मौजूद है और हमें इसका समाधान करने के लिए स्थाई उपाय खोजने होंगे।

6. अपने विश्वविद्यालयों में संकाय सदस्‍यों की कमी के समाधान के लिए आप कुछ कदम उठा सकते हैं। उदाहरण के लिए, आप एक मजबूत अतिथि संकाय कार्यक्रम तैयार कर सकते हैं, अध्यापन के ऑनलाइन साधनों का प्रयोग कर सकते हैं, सेवानिवृत्त प्रोफेसरों को दोबारा नियुक्त कर सकते हैं। रिक्तियों के बारे में पहले से योजना बनाने से भी मदद मिल सकती है। इसके अलावा, प्रतिभाओं को आकर्षित करने की प्रत्येक विश्वविद्यालय की योग्यता उसकी अपनी प्रतिष्ठा और गुणवत्ता पर निर्भर करती है। इसलिए अपने समकक्ष विश्वविद्यालयों के बीच सर्वोत्तम बनने के लिए आपस में प्रतिस्‍पर्धा करें। प्रतिभाओं को कार्य पर रखने और उन्हें अपने पास बनाए रखने से सुधार अपने आप हो जाएगा।

7. आपको अपने अनुसंधान और शिक्षण संसाधनों को बढ़ाने तथा अपने परिसरों के बाहरअपने दायरे का विस्‍तार करने के लिए प्रौद्योगिकी को व्यापक तौर पर अपनाना चाहिए। अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए आप को व्यापक मुफ्त ऑनलाइन पाठ्यक्रमों (एमओओसी) के संचालन के लिए कार्य करना चाहिए।प्रौद्योगिकी को अपनाकर आप अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, आप अपने कक्षा कैलेण्‍डरों, टिप्‍पणों, परीक्षाओं और सौंपे गए कार्यों को डिजिटाइज करके कागज के प्रयोग को काफी हद तक कम कर सकते हैं।

8. विश्वविद्यालयों को हमारे राष्ट्र के सम्मुख उपस्थित विशिष्‍ट चुनौतियों पर ध्यान देने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। इनमें से अनेक चुनौतियों के लिए रचनात्मक औरनवान्वेषी समाधानों की जरूरत है। यह सुनिश्चित करना आपका परम कर्तव्य है कि आपके परिसर ऐसे स्थानों के रूप में उभरें, जहां उन्मुक्त अभिव्यक्ति और विचारों को प्रोत्साहन मिले, जहां प्रयोग धर्मिता को बढ़ावा मिले और असफलता को उपहास के तौर पर नहीं बल्कि सीख के रूप में देखा जाता हो। इसके अलावा, विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे विद्यार्थियों को हमारे लोगों, हमारे राष्ट्र, शहरों, नगरों और गांवों के समक्ष उपस्थित समस्‍याओं की प्रत्‍यक्ष जानकारी देने का मध्‍यम बनें।

9. ऐसे प्रत्‍यक्ष अनुभवों के माध्‍यम से और रचनात्मक व नवान्‍वेषी चिंतन को प्रेरित करके विश्‍वविद्यालय के राष्ट्रीय विकास में योगदान करनेवाली अनुसंधान औरनवाचार परियोजनाओं को अपनाने के लिए अपने विद्यार्थियों को तैयार कर सकते हैं।उदाहरण के लिए, विज्ञान में मौलिक अनुसंधान करना यदि महत्वपूर्ण है तो अनुप्रयुक्त अनुसंधान करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जिससे वास्तविक जीवनकी विशिष्‍ट समस्‍याओं या कहें कि हमारे किसानों की समस्याओं को हल किया जा सकता है। जहां सैद्धांतिक व्याख्यान की कक्षा विद्यार्थियों के लिए जरूरी है वहीं नजदीक के गांवों और शहरों की स्‍थानिक परियोजनाएं भी उतनी ही जरूरी हैं। हमें यह आत्मिक चिंतन करना है कि क्या हम इस बारे में पर्याप्त प्रयास कर रहे हैं। आप सभी कोअपनी पाठ्यचर्या के भाग के रूप में, समुदाय-उन्मुख परियोजनाओं को समेकित करने का सजग प्रयास करना चाहिए।

10. आज हमने जहां समस्याओं पर विचार विमर्श किया वहीं हमने आगे बढ़ने के रास्तों की पहचान के मामले में भी कुछ प्रगति की है। मुझे विश्वास है कि मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर के नेतृत्व में मानव संसाधन विकास मंत्रालय समयबद्ध तरीके से इन समस्याओं को हल करने का भरसक प्रयास करेगा।मेरे विचार से अब से लगभग छह महीने बाद शायद दिसंबर में हमलोग प्रगति की समीक्षा के लिए दोबारा इकट्ठे होंगे।

11. इन्हीं शब्दों के साथ, पूरी ईमानदारी के साथ विचार-विमर्श में भाग लेने के लिए मैं आप का धन्यवाद करता हूं। मैं समझ सकता हूं कि आप सभी लोग अपने विश्वविद्यालयों को उत्कृष्ट संस्थान बनाने के लिए बहुत प्रेरित हैं। मैं आपको और आपके विश्वविद्यालयों को उज्‍जवल भविष्य की शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

जय हिंद