Back

21वें विश्व मानसिक स्वास्थ्य सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

नई दिल्ली : 02.11.2017

Download PDF


केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्री, डॉ. हर्षवर्धन

सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, सुश्री प्रीति सूदन

अध्यक्ष, वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ, डॉ. गेब्रिएल इवबिजारो

अध्यक्ष, वर्ल्ड कांग्रेस, डॉ. सुनील मित्तल और डॉ. एन.के. बोहरा

विशिष्ट अतिथिगण

देवियो और सज्जनो

1. मुझे वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ द्वारा केयरिंग फाउंडेशन और अन्य संस्थानों की साझेदारी से आयोजित किए जा रहे विश्व मानसिक स्वास्थ्य सम्मेलन के उद्घाटन करने के लिए यहां आकर प्रसन्नता हुई है। मेरे सामने, इस सम्मेलन में भाग ले रहे एक हजार प्रतिनिधि बैठे हैं। मैं लगभग 50देशों का प्रतिनिधित्व कर रहे 300 अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों का विशेष रूप से स्वागत करता हूं।

2. मुझे ज्ञात है कि यह विश्व सम्मेलन भारत में और वास्तव में दक्षिण एशिया में पहली बार हो रहा है। यह हम सभी के लिए गर्व का विषय है। स्पष्टतः,यह सम्मेलन यहां बिल्कुल सही समय पर आयोजित किया जा रहा है। हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे गंभीर रूप धारण करते जा रहे हैं।

3. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक रूप से देखें तो भारत, मानसिक बीमारियों के प्रसार के मामले में सर्वाधिक मानसिक रुग्णता वाले देशों में शामिल है। हमारे राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2016 में पाया गया है कि भारत की करीब 14 प्रतिशत आबादी को सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य मदद की जरूरत है। लगभग दो प्रतिशत लोग गंभीर मानसिक विकारों से पीडि़त हैं। लगभग 2 लाख भारतीय हर साल आत्महत्या कर लेते हैं। यदि इसमें आत्महत्या करने के प्रयासों को जोड़ा जाए तो यह संख्या काफी बढ़ जाएगी।

4. ये आंकड़ें चिंताजनक हैं। यह भी सच है कि महानगरों में रहने वाले लोग युवा-चाहे वे वयस्क हों या बच्चे या किशोर हों, मानसिक रोगों के मामले में सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। भारत में ये दोनों ही कारक चिंता का विषय हैं। हमारी जनसंख्या युवा है, 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। और हमारे समाज का तेजी से शहरीकरण हो रहा है। ऐसी स्थिति में हमारे सामने संभावित मानसिक स्वास्थ्य महामारी का अंदेशा वास्तविक है।

मित्रो,

5. अभी जो आकड़ें मैंने बताए हैं, उन्हें देखते हुए, यह एक विडंबना ही है कि सामान्य रूप से 90 प्रतिशत जरूरतमंद भारतीयों को मानसिक स्वास्थ्यचर्या मिल ही नहीं पाती। इसकेअनेक कारण हैं। और मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन में उन पर ध्यान दिया जाएगा।

6. मानसिक रोगियों के सामने सबसे बड़ी बाधा होती है-सामाजिक अपमान और अस्वीकार की। इसके कारण इस मुद्दे की ओर ध्यान नहीं दिया जाता या फिर इस पर बातचीत नहीं की जाती। कुछ मामलों में इसके कारण रोगी आत्मनिदान का सहारा लेते हैं जो सही नहीं है और हालात उससे और खराब हो जाते हैं। इसके कारण दूसरे अतिवादी कदम उठाने की संभावना पैदा हो जाती है। समाज के सदस्य होने के नाते, हमें कलंक की इस संस्कृति से लड़ना है। हमें मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करनी चाहिए तथा अवसाद और तनाव का उपचार इस रूप में किया जाना चाहिए कि ये रोग ठीक किए जा सकते हैं, न कि इन्हें अपराधबोध के साथ रहस्य के रूप में छिपाया जाने वाला रोग समझा जाए।

7. इस संदर्भ में, मुझे यह देखकर खुशी है कि सलाह और जागरूकता को भारत सरकार के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के महत्वपूर्ण अवयव के रूप में रखा गया है। इस कार्यक्रम के तहत मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र में 22 उत्कृष्टता केन्द्रों का निर्माण किया जा रहा है। इसके समानांतर,जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के दायरे में पहले ही भारत के अनुमानित 650में से 517जिलों को लाया जा चुका है। इस कार्यक्रम से समाज में जमीनी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बातचीत की जाने लगी है।

8. जागरूकता फैलाने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि सार्वजनिक और निजी क्षेत्र तथा सरकार और नागरिक सामाजिक संगठनों के बीच साझेदारियां बनाईं जाएं। सामुदायिक सहयोग नेटवर्क तैयार किया जाना भी लाभकारी होगा। इनसे, खास तौर से हमारे बड़े शहरों में पारंपरिक संयुक्त परिवार प्रणाली के धीरे-धीरे टूटते जाने से पैदा हुए अंतर को भी समाप्त किया जा सकता है। कभी-कभी इससे युवाओं के मन में यह धारणा बन जाती है कि उनके साथ बात करने वाला कोई नहीं है,न कोई ठोस सुनने वाला है और न ही कोई अनौपचारिक सलाह देने वाला है। इसके बाद यही अवधारणा अवसाद की दिशा में बढ़ने वाला कदम बन सकता है।

9. मानसिक स्वास्थ्य चुनौती से लड़ाई में दूसरा सबसे बड़ा अंतराल है-मानव संसाधन की कमी। भारत 1.25अरब लोगों का देश है परंतु उनके लिए दस लाख से भी कम अर्थात् केवल सात लाख डॉक्टर हैं। मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में, यह कमी और भी विकराल है। हमारे देश में केवल लगभग पांच हजार मनोरोग चिकित्सक और दो हजार से कम चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक हैं।

10. यह संख्या एकदम अपर्याप्त है और हमें तुरंत और प्रयास करने की जरूरत है। विशेषकर मानसिक रोगों के निदान के उद्देश्य से, यह सलाह सही है कि कॉलेजों और शिक्षा संस्थानों में पढ़ाने वाले चिकित्सकों,मनोवैज्ञानिकों का तथा हमारे देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के मोर्चे पर कार्यरत सहायक नर्सों और दाइयों की सेवाएं इस कार्य में ली जाएं।

11. मुझे बताया गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी और दूर चिकित्सा भी इसमें मददगार होगी। ऐसी प्रौद्योगिकियों के माध्यम से शहरों के डॉक्टरों और परामर्शदाताओं को ग्रामीण इलाकों के मानसिक स्वास्थ्य रोगियों से जोड़ा जा रहा है। हमारे देश में जैसे-जैसे इंटरनेट की पहुंच का विस्तार होगा, यह युक्ति काफी क्षमतावान सिद्ध होगी।

मित्रो,

12. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि स्नायु विज्ञान तथा मानसिक विकारों के चिकित्सीय कारणों और उपचार की हमारी समझ में वृद्धि के अलावा, विश्व कांग्रेस में मानसिक स्वास्थ्य में योग, ध्यान और पारंपरिक दृष्टिकोण के बारे में चर्चा के लिए सत्र रखे गए हैं। हमारे पारंपरिक ज्ञान की पूंजी का प्रयोग और इसकी जानकारी को मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित आधुनिक अनुसंधान के साथ जोड़ना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे मानसिक स्वास्थ्यचर्या के प्रति साकल्यवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलेगा और उपचार पद्धति के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में श्रेष्ठतम को संयोजित किया जा सकेगा।

13. योग का उदाहरण बहुत शिक्षाप्रद है। जब लोग योग के बारे में बात करते हैं तो वे सामान्यतया इसके शारीरिक लाभों का जिक्र करते हैं। तथापि योग के मानसिक,मनोवैज्ञानिक और संज्ञानात्मक लाभ भी हमारे अध्ययन के लिए उतने ही जरूरी हैं। चिंता और अवसाद से लड़ने और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की शुरुआत को रोकने में योग की भूमिका पर नियोजित विशेष सत्र की परिचर्चा के बारे में प्रतिपुष्टि की प्रतीक्षा मुझे रहेगी।

14. निष्कर्ष रूप में,मैं एक बार फिर जोर देकर कहना चाहूंगा कि भारत की मानसिक स्वास्थ्य चुनौती ऐसे समाज को जकड़ रही है जो बहु-विध बदलावों से गुजर रहा है। पारंपरिक रोगों हटकर अब धीरे-धीरे असंक्रामक रोग हमारे लोगों और उनकी सेहत के लिए बड़े खतरे के रूप में उभर रहे हैं। यह स्थिति विश्वव्यापी प्रवृत्ति का हिस्सा है। और अनेक असंक्रामक रोग या तो मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों से उपजते हैं या उनके साथ जुड़े होते हैं।

15. इन सभी के कारण इस विश्व कांग्रेस पर तत्काल चिंता का भारी दायित्व है। इस सम्मेलन के अंत तक,हमें इस स्थिति में पहुंच जाना चाहिए कि हम एक समबद्ध कार्यक्रम बना सकें जिससे प्रत्येक जरूरतमंद व्यक्ति की पहुंचमानसिक स्वास्थ्य निदान तक यथाशीघ्र सुनिश्चित की जा सके। इस कक्ष में उपस्थित आप सभी लोगों को और यहां उपस्थित अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों को भी मैं इस प्रयास में भागीदार मानता हूं। आ लोग इस सम्मेलन में एक वास्तविक राष्ट्र निर्माण का और मानवतावादी कार्य संपन्न करेंगे।

मैं आपके लिए और सम्मेलन की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं।


धन्यवाद


जय हिन्द।