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ईशा योग केन्द्र में महाशिवरात्रि समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का सम्बोधन

कोयम्बतूर : 04.03.2019

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1. देश भर से और कई अन्य देशों से आए यहाँ इतनी बड़ी संख्या में उपस्थित आप सभी लोगों को नमस्कारम, वणक्कम और गुड इवनिंग। मुझे इस पावन दिवस पर आपके बीच आकर बहुत प्रसन्नता हुई है।

2. हमारा देश आस्था और आध्‍यात्मिकता का देश है। शायद ही किसी अन्य देश में इतने विविध त्योहार और उत्सव मनाए जाते होंगे। विश्वास और आध्यात्मिकता से भारत को दृढ़ निश्चय और आंतरिक संकल्प शक्ति भी मिलती है। हमारे त्योहारों में, महाशिवरात्रि सर्वाधिक प्रिय,चिरस्थायी और सार्थक पर्वों में से एक है। लाखों भक्तगण इस त्योहार को भगवान शिव के पर्याय समझे जाने वाले जीवन मूल्‍यों पर चिन्‍तन-मनन मनाते हैं।


3. आज, मुझे हिन्दी के महान कवि, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गई चंद पंक्तियां याद आ रही हैं -

मनुज दुग्ध से, दनुज रुधिर से

अमर सुधा से जीते हैं

किन्तु हलाहल भव-सागर का

शिव-शंकर ही पीते हैं।


इन पंक्तियों का अभिप्राय यह है कि सामान्य जन अपना जीवन ईमानदारी से जीते हैं औरकेवल उसी की अपेक्षा करते हैं जिसपर उनका अधिकार है। जो पथभ्रष्ट हैं,बुरे लोग हैं, वे दूसरों से छीन कर लेने में भी संकोच नहीं करते हैं। और देवताओं को तो अमृत भी सुलभ रहता है - अर्थात्,वे सर्वोत्तम वस्तुओं का भोग करते हैं। किन्तु सर्व-व्यापी और परोपकारी शिव, संसार को विषमुक्त रखने के लिए विष, अर्थात्, संसार में व्याप्त दुःख, पीड़ा, नकारात्मकता, कष्‍ट आदि स्वयं धारण कर लेते हैं। वस्तुतः, इन पंक्तियों का संदर्भ यह है कि सृष्टि की रक्षा के लिए किए गए समुद्र मंथन के दौरान निकले विष के दुष्‍प्रभाव से संसार की रक्षा के लिए शिव ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया था। उस विषपान के कारण उनका गला नीला पड़ गया,जिसके कारण उन्हें ‘नीलकंठ’ कहते हैं। बुनियादी स्तर पर, इन पंक्तियों से यह संदेश मिलता है कि

जीना उसी का जीना है,जो औरों की खातिर जीते हैं।

अर्थात्, सार्थक जीवन वही है जो दूसरों की सेवा में लगाया गया हो। यही नीलकंठ शिव का संदेश है। उनके संदेश के अनुरूप, हममें से प्रत्येक को मानवता की सेवा करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। मुझे ज्ञात है कि मानव कल्याण को बढ़ावा देने के अनेक प्रकल्‍पों का संचालन करके सद्गुरु और ईशा फाउंडेशन, इस सन्दर्भ में प्रशंसनीय योगदान कर रहे हैं।

4. शिव के कई रूप हैं, और इनमें से उनका एक रूप है-अर्धनारीश्वर का। इस स्‍वरूप में आधा शरीर पुरुष का और आधा शरीर नारी का है। इससे यह संकेत मिलता है कि मानवीय व्यक्तित्व के लिए और समाज को समृद्ध बनाने के लिए, पुरुषत्व और नारीत्व के रूप में दोनों पहलुओं का संतुलित होना आवश्यक है। आज पूरी दुनिया महिला सशक्तिकरण की बात करती है। लेकिन हमारे सांस्कृतिक लोकाचार में इसपर हमेशा से ही जोर दिया जाता रहा है।

5. ऐतिहासिक दृष्टि से, शिव के गुणों ने दुनिया भर के भक्तों को आकर्षित किया है। कुछ महीने पहले, मुझे वियतनाम में प्राचीन ‘माय सोन’ मंदिर परिसर की यात्रा का अवसर मिला। यह मंदिर परिसर उस अनूठी संस्कृति की याद दिलाता है जो हजारों वर्ष पूर्व वर्तमान वियतनाम के तट पर विकसित हुई थी, यह एक ऐसी संस्कृति थी जो भारत में हिन्‍दू धर्म की आध्यात्मिक गंभीरता से अनुप्राणित हुई थी। चंपा राजाओं द्वारा निर्मित इस प्राचीन मंदिर परिसर को सुशोभित करता शिव लिंग और शिव की अनेक मूर्तियां देखकर वास्तव में अद्भुत अनुभव हुआ।

6. प्राचीन संसार में ऐसे कई और उदाहरण मौजूद हैं। अफगानिस्तान से चीन और जापान तक, अतीत में भक्तों ने अनेक शिव मंदिर बनाए हैं। आज की शाम, पूरे भारत में, कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात के सोमनाथ से लेकर असम के कामाख्या तक, हम हर तरफ ‘ॐ नमः शिवाय’का मंत्र गुंजायमान होता सुनेंगे।

7. मुझे बताया गया है कि योग संस्कृति में, योग के प्रवर्तक - शिव को प्रथम योगी या आदियोगी माना जाता है। सद्गुरु कहते हैं कि आदियोगी के रूप में शिव, मनुष्य के लिए अपनी वर्तमान सीमाओं से परे आत्‍मोत्‍थान की संभावना के द्वार खोलते हैं।आदियोगी की112 फुट की भव्य मूर्ति के समक्ष आज आपके बीच उपस्थित होना मेरे लिए बहुत प्रसन्नता की बात है।

8. हम इस समय दक्षिण भारत के कैलाश या दक्षिण कैलाश अर्थात्वेल्लियांगिरी पर्वत की तलहटी में मौजूद हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आदियोगी कुछ समय के लिए यहां ठहरे थे। मुझे 2006 में कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ था और आज मैं दक्षिण के कैलाश के समक्ष उपस्थित हूं। निजी तौर पर, आज की यात्रा से मेरा एक आध्यात्मिक चक्र पूरा हुआ है। कैलाश मानसरोवर की अपनी यात्रा के दौरान मैंने जो अनुभव किया, आज मैं बिलकुल वैसा ही अनुभव कर रहा हूं।

9. सद्गुरु द्वारा परिकल्पित यह आयोजन, महाशिवरात्रि की महिमा का अनुभव करने का अवसर है। एक और जुड़ाव मेरे ध्‍यान में आता है, और उस जुड़ाव को आपके साथ साझा करता हूं। माना जाता है कि भगवान शिव ने हमारी इस धरा पर शक्तिशाली मां गंगा के अवतरण में सहायता की थी, और सद्गुरु उन लोगों में शामिल हैं, जो हमारी नदियों को फिर से जीवंत बनाने का अभियान चला रहे हैं। हमारी नदियों और पर्यावरण का संरक्षण एक महान और नेक उद्देश्य है। मुझे खुशी है कि सद्गुरु ने इस उद्देश्य को अपने अभियान का हिस्सा बनाया है।

10. आज यहाँ बहुत सारे युवा चेहरों को देखकर भी मुझे अति प्रसन्नता हो रही है। यह खुशी की बात है कि आप इतने कम उम्र से योग का अभ्यास कर रहे हैं। जीवन के शुरुआती दिनों में अपने समय का सदुपयोग करने के लिए मैं आपकी सराहना करता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे युवा, केवल भारत ही नहीं अपितु पूरी मानवता के भविष्य को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

11. यहाँ बड़ी संख्‍या में युवाओं की उपस्थिति, सद्गुरु और ईशा फाउंडेशन के कार्यों के बारे में बहुत कुछ बयां करती है। सद्गुरु ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत की सदियों पुरानी आध्‍यात्मिकता और जीवन-मूल्यों को भारत के और अन्य देशों के युवाओं के लिए सुलभ बनाया जाए। सद्गुरु एक ऐसे आध्यात्मिक सेतु बनकर उभरे हैं, जो हमारे सदियों से संजोये गए जीवन-मूल्यों को, प्रज्ञा को विद्वता और ज्ञान को आज के युवाओं के लिए ऐसी भाषा में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसे वे समझते हैं।

12. अपनी वाणी को विराम देते हुए, मैं सद्गुरु और ईशा फाउंडेशन के इन सभी स्वयंसेवकों को बधाई देता हूं जिन्होंने इस आयोजन को इतना भव्य बनाने के लिए अथक प्रयास किए हैं। मैं महाशिवरात्रि पर्व के साथ-साथ आपके सभी भावी प्रयासों के लिए आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!