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फिक्की महिला संगठन के 34वें वार्षिक अधिवेशन में भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

नई दिल्ली : 05.04.2018

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1. आप सभी को मेरा नमस्कार। मुझे फिक्की महिला संगठन जो फिक्की की सर्वाधिक ऊर्जावान और उत्कृष्ट शाखा है, के 34वें वार्षिक अधिवेशन में उपस्थित होकर खुशी हो रही है। महिलाओं के बीच उद्यमिता तथा पेशेवर उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के कार्य के लिए मैं फिक्की महिला संगठन को और उनके सदस्यों को बधाई देता हूं।

2. मुझे बताया गया है कि फिक्की महिला संगठन अपनी गतिविधियों को महानगरों तक ही सीमित नहीं रखता है, इसकी भारत भर में 14 शाखाएं हैं और हाल ही में जनवरी, 2018 में उत्तराखंड में इसकी नवीनतम शाखा खोली गई है। फिक्की महिला संगठन खासतौर से ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण के प्रति समर्पित है। इसलिए आज के वार्षिक सत्र का विषय ‘वीमन ट्रांसफार्मिंग इंडिया' उपयुक्त ही है।

3. मुझे बताया गया है कि इस अधिवेशन की योजना, हमारे समाज में जमीनी स्तर पर महिलाओं के लिए कौशल विकास और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों की पूर्णता के रूप में बनाई गई है। ऐसे प्रयास सराहनीय हैं। आपके संगठन की जिम्मेदारी पदमुक्त अध्यक्ष के हाथ से आने वाले अध्यक्ष के हाथ में आ गई है, और मुझे विश्वास है कि इन प्रयासों की यही गति बनाए रखी जाएगी।

देवियो और सज्जनो,

4. हमारे देश में आधी संख्या महिलाओं की है। वे कार्य-स्थल पर और घर में बहुत से विविध तरीकों से हमारी अर्थव्यवस्था में योगदान देती हैं। परंतु जब कारोबार या वाणिज्य की बात आती है तो यह देखकर खेद होता है कि महिलाओं को उनका यथोचित प्राप्य नहीं दिया है।

5. इसमें संदेह नहीं कि इस मामले में प्रगति हुई है। मेरा ध्यान एक अध्ययन की ओर आकर्षित किया गया है जिसमें बताया गया है कि मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबन्ध निदेशक महिलाओं की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक हो गई है। एक दशक पहले यह संख्या लगभग 10 प्रतिशत ही थी। विश्वभर में फॉर्च्यून 500 कंपनियों में महिला सीईओ3 प्रतिशत हैं। भारत में, 11 प्रतिशत कंपनियों में,इस सभागार में उपस्थित आप में से कुछ महिलाओं सहित, अनेक महिलाएं ऐसी नेतृत्वकारी भूमिकाओं में हैं। हाल के वर्षों में कानून में बदलाव के माध्यम से सूचीबद्ध कंपनियों में महिला निदेशकों की नियुक्ति करना अनिवार्य कर दिया गया है।

6. यह सब निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। इसके बावजूद ऐसी चुनौतियां बनी हुई हैं जिनका समाधान किया जाना बाकी है। हमें ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि हमारी बेटियां और बहनें अधिक से अधिक संख्या में कार्यबल में शामिल हों। हमें कामकाजी महिलाओं की प्रतिशतता बढ़ाने के लिए घर में, समाज में और कार्यस्थलों पर उपयुक्त, उत्साहवर्धक और सुरक्षित माहौल सुनिश्चत करने के कड़े प्रयास करने होंगे।

7. वर्तमान में यह संख्या अपेक्षा से कम है। इसके लिए जिम्मेदार बहुत से कारणों की पहचान की गई है परंतु मेरे विचार से ये सब बहाने हैं, कारण नहीं हैं। कामकाजी महिलाओं के गौरवान्वित पिता और ससुर के रूप में, मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी यदि हम इस स्थिति में बदलाव ला पाएंगे। यदि और अधिक महिलाएं कार्यबल का हिस्सा बन जाएं तो परिवार की आय और हमारा सकल घरेलू उत्पाद बढ़ जाएगा। हम और समृद्ध राष्ट्र बन जाएंगे। इससे भी बढ़कर बात यहहै कि हम, अधिक समतापूर्ण समाज बन जाएंगे।

देवियो और सज्जनो,

8. फिक्की महिला संगठन जैसे संगठनों का असली दायित्व युवा महिलाओं को नौकरी योग्य कुशल बनाने का ही नहीं है। हाँ, यह अपने आप में महत्वपूर्ण तो है परंतु इससे ज्यादा महत्वपूर्ण वह भूमिका है जिसे फिक्की महिला संगठन महिलाओं को उद्यमी और रोजगार अन्वेषक नहीं बल्कि रोजगार सृजक और रोजगार प्रदाता बनने के लिए प्रोत्साहित करने के मामले में निभाता है।

9. ऐसे पर्याप्त प्रमाण हैं कि जिन देशों की जनसंख्या में उद्यमियों की संख्या ज्यादा होती है वे अपेक्षाकृत अधिक तेजी से विकास और प्रगति करते हैं। भारत में, उद्यमिता की एक दीर्घ और युगों पुरानी परंपरा वाला समाज मौजूद है और उसमें यह बात स्पष्ट देखी जा सकती है। हम चौथी औद्योगिक क्रांति, 3डी प्रिंटरों और रोबोटिक्स के युग में जी रहे हैं। यह युग अवसर और चुनौतियां दोनों पैदा कर रहा है। इस युग में, हमें साधारणत: रोजगार का भविष्य नहीं बल्कि उद्यमिता के भविष्य के लिए कार्यनीतियां बनाने की जरूरत है।

10. उद्यमिता की यह भावना, अपना खुद का एक लघु उद्यम बनाने की आकांक्षा, केवल इस प्रकार के महिला समूहों तक ही सीमित नहीं है। कुद दिन पहले मुझे पश्चिम बंगाल में हंसपुकुर की एक उल्लेखनीय उद्यमी श्रीमती सुभाषिनी मिस्त्री से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एक निरक्षर गृहिणी, श्रीमती मिस्त्री के पति की मृत्यु चिकित्सा सहायता प्राप्त होने से पहले हो गई। अपने परिवार को सहारा देने के लिए उन्होनें दिहाड़ी मजदूर और गली-गली में घूमकर बिक्री करने वाली महिला के रूप में काम करना शुरूकिया। लेकिन यह सब करते हुए, वे अपने सपने के लिए धन बचाती रहीं। आखिरकार,उन्होंने अपने पति के उसी गांव में, जहां पर चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में उनके पति का देहांत हुआ था, जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा खरीदा। इस जमीन पर श्रीमती मिस्त्री ने एक डिस्पेंसरी और बाद में एक आधुनिक अस्पताल का निर्माण शुरू किया। आज प्यार से उनके अस्पताल को ‘ह्यूमनिटी हॉस्पिटल’ जैसा खूबसूरत नाम दिया गया है और अब इसमें दो परिसर बन गए हैं जो समाज को सेवा दे रहे हैं।

11. इस वर्ष श्रीमती सुभाषिनी मिस्त्री को पद्म श्री पुरस्कार प्रदान किया गया और इस प्रकार मुझे उनसे मिलने का सम्मान प्राप्त हुआ। उनकी कहानी प्रेरणादायक है, परंतु वह ऐसी अकेली महिला नहीं हैं। लगभग 60 वर्ष पहले, मार्च, 1959 में मुंबई की 7 महिलाएं एकजुट हुईं। उन्होंने 80 रुपये की पूंजी उधार ली और ‘श्री महिला गृह उद्योग-लिज्जत पापड़’ की स्थापना की। आज‘लिज्जत पापड़’ ब्रांड पूरे विश्व में फैल गया है। इसका वार्षिक टर्न ओवर लगभग 1600 करोड़ रुपये है और 45,000 महिलाएं इसमें हिस्सेदार और लाभार्थी हैं। यह भी एक शानदार कर्म-यात्रा है।

12. हमें अपने देश की सफलता की ऐसी और कहानियां गढ़ने की जरूरत है। हमें जमीनी स्तर पर अपनी बेटियों व बहनों तक उद्यमिता के जादू को ले जाना चाहिए और स्टार्ट-अप में उनकी मदद करनी चाहिए। यह सही है कि इसमें सरकार की भूमिका है परंतु प्रबुद्ध वर्ग और कारोबार तथा फिक्की महिला संगठन जैसे संगठनों की भी इसमें भूमिका है। यहां उपस्थित आप सभी को परिवर्तन-दूत बनना है। आपको अपनी गरीब बहनों का सहारा बनना चाहिए जब वे किसी विचार को उद्यम बदलने का प्रयास कर रही हों। मैं उम्मीद करता हूं कि फिक्की महिला संगठन लिज्जत पापड़ की तर्ज पर उस प्रतयेक राज्य में जहां पर ऐसा कोई उद्यम मौजूद है, उस उद्यम को प्रोत्साहन देगा।

13. सरकार ने सामान्य नागरिकों, विशेषकर महिलाओं के बीच उद्यम की संस्कृति को बढ़ावा देने के निर्णायक कदम उठाए हैं। महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए अप्रैल, 2016 में ‘स्टैंड-अप इंडिया’ पहल शुरू की गई थी। लगभग 45,000 ऋण मुख्य रूप से एकल स्वामित्व वाले उद्यमों को वितरित किए गए हैं। इनमें से लगभग 39,000ऋण महिलाओं को दिए गए जो कि इसका एक बड़ा हिस्सा है।

14. ‘मुद्रा’ योजना के अंतर्गत,पिछले तीन वित्तीय वर्ष के दौरान, लगभग 117 मिलियन ऋणों को मंजूरी दी गई। इनमें से करीब 88 मिलियन ऋण महिला उद्यमियों को प्रदान किए गए और आपको यह जानकर खुशी होगी कि दिसम्बर, 2017 तक‘मुद्रा’ योजना के अंतर्गत गैर-निष्पादक आस्तियों की संख्या मंजूर ऋणों के आठ प्रतिशत से भी कम है।

15. कारोबार में वास्तविक नाकामी की घटनाएं घट सकती हैं। परंतु बैंक ऋण चुकाने में जानबूझकर और आपराधिक चूक कीजाए तो हमारे सभी भारतीय परिवारों को इसका खमियाजा भुगतना पड़ता है। निर्दोष नागरिकों को नुकसान उठाना पड़ता है और आखिरकार ईमानदार करदाता पर इसका बोझ पड़ता है। यह सराहनीय है कि हमारे देश में जमीनी स्तर पर,छोटे गांवों में और पारंपरिक रूप से पिछड़े तथा वंचित समुदायों में ‘मुद्रा’ उद्यमी अपना ऋण चुकाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। ये मेहनतकश भारतीय जन हैं और उनमें से अधिकांश महिलाएं हैं। वे अपना छोटा सा कारोबार शुरू करने के लिए पूंजी के रूप में मामूली राशि उधार ले रही हैं बल्कि वे हमारे भारत के सपनों को निर्माण कर रही हैं।

16. उनकी कहानी को अपनी कहानी का हिस्सा बनाना आपके ऊपर निर्भर है। अपने तुलन-पत्र की जरूरत का ताल-मेल सामाजिक संतुलन की जरूरत के साथ बैठाने की जिम्मेदारी आपकी है। आप, अपने आपसे पूछें कि ज्यादातर महिलाओं द्वारा संचालित इन कारोबारों को अपनी मूल्य शृंखलाओं का अभिन्न अंग आप कैसे बना सकती हैं। किस प्रकार से विक्रेताओं, सहायक उपक्रमों,आपूर्तिकारों, वितऱकों या किसी भी अन्य रूप में इन छोटे-छोटे स्टार्ट अप मेंआप साझीदार बन सकती हैं।

17. मैं आपसे गुणवत्ता या स्तर पर समझौता करने के लिए नहीं कह रहा हूं। परंतु इस बात पर गौर अवश्य करें कि किस प्रकार अपनी कंपनियों में आप ऐसे जमीनी स्तर के लघु उद्यमों को प्रोत्साहित कर सकते हैं जो या तो महिलाओं द्वारा ही संचालित हैं या जिनमें काफी अधिक संख्या में महिलाएं रोजगार-प्राप्त हैं। हमारे कॉर्पोरेट क्षेत्र द्वारा हमारी अर्थव्यवस्था में महिलाओां को केवल शामिल करने पर ही नहीं बल्कि उन्हें सशक्त बनाने की दृष्टि से महिला अनुकूल और लैंगिक-संवेदी आपूर्ति शृंखलाओं के सृजन की दिशा में मज़बूत कदम उठाए जाने चाहिए।

18. यह समय, भारत के लिए असीम अवसरों का समय है। यदि हमारे संस्थान और हमारे समाज विधि के लेखे और न्याय की भावना के प्रति सच्ची निष्ठा रखते हों तो हम प्रत्येक भारतीय को उसकी क्षमता साकार करने में मदद कर सकते हैं। हमारे बीच असहमति हो सकती है परंतु दूसरे व्यक्ति की गरिमा का भी सम्मान होना चाहिए-हमें गरिमा और सदाशयता; व्यवस्था और विधि अनुरूप शासन,निष्पक्षता व न्याय; उद्यमशीलता और आकांक्षाएं-इन सभी को हासिल करना होगा। हम इसमें भेदभाव नहीं कर सकते।

19. इसमें हममें से प्रत्येक की एक निश्चित भूमिका है। फिक्की महिला संगठन का प्रत्येक सदस्य व्यक्तिगत रूप से और फिक्की महिला संगठन एक संस्था के रूप में भारतीय कारोबार में और भारतीय समाज में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। रास्ता आपको ही दिखाना है।

20. इन्हीं शब्दों के साथ और आने वाले वर्ष में नए अध्यक्ष के अंतर्गत फिक्की महिला संगठन को शुभकामनाएं देते हुए मैं एक बार फिर आपका धन्यवाद करता हूं।

जय हिन्द !