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'मानवाधिकार दिवस' के अवसर पर भारत के राष्‍ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्‍द का संबोधन

नई दिल्ली : 10.12.2019

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1. विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर आपके बीच आकर मैं गौरव का अनुभव कर रहा हूं। हम मानव इतिहास की एक अहम तिथि को मनाने के लिए यहां एकत्र हुए हैं। 10 दिसंबर, 1948 के दिन पूरी मानवता ने इस बात को विधिवत मान्यता दी थी कि हम सभी एक समान हैं। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा, इस दिवस को मनाने और मानवाधिकारों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने में देश को जिस तरह नेतृत्व प्रदान किया जा रहा है, उसे देखकर मुझे प्रसन्नता हो रही है।

2. मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) की प्रस्तावना और 30 अनुच्छेदों में व्यापक रूप से सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों का उल्लेख किया गयाहै। इनमें समानता का अधिकार, भेदभाव से मुक्ति का अधिकार, जीवन, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार तथा दासता व प्रताड़ना से मुक्ति तथा अन्य अधिकार शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दस्तावेज को ‘सभी लोगों और सभी राष्ट्रों की उपलब्धियों का साझा मानदंड’ घोषित किया था।

3. मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का प्रारूप लगभग उसी समय तैयार किया जा रहा था जब संविधान सभा हमारे संविधान का प्रारूप तैयार कर रही थी। पिछले महीने के अंत में हमने संविधान को अंगीकार किये जाने की 70वीं जयंती मनाई। उस दिन उच्चतम न्यायालय में अपने संबोधन में मैंने संविधान सभा की महिला सदस्यों को विशेष रूप से श्रद्धांजलि अर्पित की थी। हंसा मेहता भी उन में से एक थीं। वह गांधीजी की प्रबल अनुयायी थीं और मूल अधिकारों से संबंधित सलाहकार समिति की सदस्या भी थीं। जब सार्वभौमिक घोषणा का प्रारूप तैयार करने का ऐतिहासिक प्रयास चल रहा था उस समय संयोग से वे संयुक्त राष्ट्र में भारत की प्रतिनिधि भी थीं। हंसाबेन वहां मानव अधिकार समिति की भी सदस्य थीं। उन दोनों महत्वपूर्ण दस्तावेजों के निर्माण में उनकी समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतेरेस ने पिछले साल उचित ही कहा था कि अगर भारत की हंसा मेहता न होतीं, तो आज हम संभवतः मानव अधिकारों की बजाय पुरुषों के अधिकारों की सार्वभौम घोषणा की बात कर रहे होते।

4. मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) के पहले ही अनुच्छेद में कहा गया हैः ‘‘गरिमा और अधिकारों की दृष्टि से सभी मनुष्य जन्म से स्वतंत्र और समान होते हैं।’’ जब इस अनुच्छेद का प्रारूप तैयार किया जा रहा था तो इसमें ‘मैन’ यानी सभी आदमियों की समानता की बात कही गयी थी। आप में से बहुत से लोग जानते होंगे कि हंसाबेन के आग्रह पर ही अंतिम प्रारूप में ‘मैन’ (यानी पुरुषों) की जगह ‘मनुष्य’ शब्द रखा गया। इसी तरह अनुच्छेद 16 में भी उन्हीं के हस्तक्षेप से वैवाहिक संबंधों में स्त्री—पुरुष समानता सुनिश्चित की जा सकी। अपने इन प्रयासों में हंसाबेन को मानव अधिकार आयोग की अध्यक्षा एलेनॉर रूज़वेल्ट का समर्थन प्राप्त हुआ था।

5. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट की पत्नी श्रीमती रूज़वेल्ट ने भी मानवाधिकारों के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान किया था, जिसके लिए वह ‘‘विश्व की प्रथम महिला’’ के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मेरा विचार है कि मानवाधिकार और स्त्री—पुरुष समानता के क्षेत्र में हंसाबेन के दूरदर्शितापूर्ण नेतृत्व की स्मृति में हम और भी बहुत कुछ कर सकते हैं।

6. शुरुआत के तौर पर हम अपने आप से यह पूछ सकते हैं कि क्या महिलाओं के लिए समान अधिकार और गरिमा की हंसाबेन की परिकल्पना पर हम खरे उतरे हैं। दुर्भाग्य से, हाल की अनेक घटनाएं हमें फिर से सोचने को विवश करती हैं। देश के कई भागों से महिलाओं के प्रति जघन्य अपराध की घटनाओं की खबरें आती हैं। यह किसी एक स्थान या एक देश तक सीमित नहीं हैं। विश्व के अनेक भागों में कमजोर लोगों के मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है। इसलिए विश्व मानव अधिकार दिवस मनाने का आदर्श तरीका यही है कि समूचा विश्व यह आत्मविश्लेषण करे कि मानवाधिकारों की घोषणा की पावन शब्दावली का अक्षरशः पालन करने के लिए हमें और क्या कुछ करने की आवश्यकता है।

7. इस तरह के आत्मविश्लेषण के साथ-साथ हमें इस दस्तावेज की फिर से विवेचना करने और मानवाधिकारों की अवधारणा को विस्तार देने का कार्य भी करना चाहिए। इसके लिए हमें संवेदना और कल्पनाशीलता की जरूरत है। उदाहरण के लिए मेरा ध्यान बच्चों और जबरन मजदूरी के शिकार लोगों पर जाता है। या उन लोगों की दुर्दशा पर विचार कीजिए जो जेलों में डाल दिए गए हैं और वे ऐसे छोटे—मोटे अपराध के मामलों की सुनवाई की प्रतीक्षा करते रह जाते हैं जो संभवतः उन्होंने किया ही नहीं न हो। निस्संदेह इन मुद्दों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि मानवाधिकारों के घोषणापत्र का अनुपालन करने वाले सद्भावपूर्ण समाज का निर्माण हो सके।

8. यह आत्मनिरीक्षण वास्तव में आवश्यक है। किंतु यदि हम इस मुद्देके दूसरे पक्ष अर्थात कर्तव्य की उपेक्षा करते हैं तो स्थिति की हमारी समझ अधूरी रह जाएगी। गांधीजी अधिकारों और कर्तव्यों को एक ही सिक्के के दो पहलुओं की तरह देखते थे। मानवाधिकारों के संदर्भ में हमारी विफलताएं, जैसा कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के मामलों में होता है, कर्तव्य के संदर्भ में हमारी असफलताओं से उत्पन्न होती हैं। हमारे राष्ट्रीय विमर्श में मानवाधिकार के सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्न पर ध्यान दिया जाना सर्वथा उचित है। इस विमर्श में हमारे मूल कर्तव्यों पर और अधिक चर्चा की गुंजाइश बन सकती है।

9. आगे चुनौतियां हैं, परंतु मुझे विश्वास है कि हम उनका समाधान निकाल सकते हैं, क्योंकि हमारे यहां सदा सतर्क रहने वाला राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग है। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 बनने के बाद मानवाधिकारों की सुरक्षा और उनके संवर्धन के लिए राष्ट्रीय और राज्य—स्तरीय संगठनों की स्थापना की गई। इस शीर्ष संस्था ने एक चौथाई शताब्दी की यात्रा पूरी कर ली है। अर्ध न्यायिक प्रहरी संस्था के रूप में, भय और पक्षपात से मुक्त होकर कार्य करते हुए मानवाधिकार आयोग लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरा है।

10. राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की लगभग सभी अनुशंसाओं को सरकारों और अन्य लोक प्राधिकारियों द्वारा स्वीकार किए जाने के तथ्य से आयोग की विश्वसनीयता का पता चलता है। इस उल्लेखनीय संस्था में नागरिकों के विश्वास की झलक भी इससे मिलती है। अपने गठन के बाद से ही आयोग ने हजारों लोगों को राहत पहुंचाई है और गलतियों को सुधारा है।

11. मुझे पता चला है कि प्रतिदिन प्राप्त होने वाली सैकड़ों शिकायतों का उत्तर देने के अलावा आयोग, मानवाधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्टों का स्वतः संज्ञान सराहनीय तत्परता से लेता है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों में सक्रियतापूर्वक समाधान उपलब्ध कराता है। इसके लिए वह राहत जुटाने का प्रयास करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि प्राधिकारीगण सुधारात्मक कार्रवाई करें।

12. मुझे यह जानकर हर्ष हुआ है कि आयोग ने, के.बी. सक्सेना रिपोर्ट की अनुशंसाओं का अनुसरण करते हुए, अनुसूचित जातियों के लोगों पर अत्याचार के मामलों में निर्णय लेने के लिए खुली सुनवाई शुरू की है। साथ ही, उच्चतम न्यायालय ने आयोग को मानसिक रोगियों से जुड़ी संस्थाओं की स्थिति में सुधार लाने का कार्य भी सौंपा है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा निरंतर निगरानी के परिणामस्वरूप मानसिक रोगियों को अब बेहतर देखभाल और सुरक्षा मिल रही है।

13. मेरा विचार है कि जमीनी स्तर पर मानवाधिकारों को प्रभावी रूप से सुदृढ़ बनाना, पूरे समाज का सामूहिक कार्य है। इस संदर्भ में, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए समाज में जागरूकता का प्रसार करके और सिविल सोसाइटी से सहयोग करके अच्छा काम किया है।

14. विश्व मानव अधिकार दिवस के अवसर पर मुझे राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष, सदस्यगण, विशेष प्रतिवेदकों और मॉनीटरों को बधाई देते हुए प्रसन्नता हो रही है। मैं सभी राज्य स्तरीय मानव अधिकार आयोगों और उनके प्रमुखों व सदस्यों को भी अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं।

धन्‍यवाद,

जय हिन्‍द !